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राजस्थान में सभी सियासी पार्टियां अपनी शतरंजी चाल चलने के लिये हर मोहरे का इस्तोमाल कर रहे हैं। ऐसे समय में दो बड़े नामों की चर्चा इन दिनों काफी हो रही है। पहला नाम देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का और दूसरा जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का। जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले दोनों नेताओं की भागीदारी राजस्थान के कार्यक्रमों में काफी बढ़ गयी है।

बीते कई महीनों में उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने राजस्थान में कई कार्यक्रमों में शिरकत की है। हालांकि उनका कोई भी कार्यक्रम राजनीतिक नहीं था, मगर सीएम गहलोत ने बीते दिनों एक टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव के किसी भी नेता को भेजो, बस उपराष्ट्रपति को मत भेजो। इसके बाद तो मानो प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया।

तो वहीं अब पूर्व राज्यपाल मलिक भी राज्य में काफी सक्रिय हैं और निरंतर सभाएं कर मोदी सरकार को घेरने का काम करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निवासी सत्यपाल मलिक को भाजपा की केन्द्र सरकार ने ही राज्यपाल जैसे अहम दायित्व की जिम्मेदारी सौंपी थी। अब उनकी एक तस्वीर गहलोत के साथ नजर आई है, जिसे खुद गहलोत ने ट्वीट किया। इसमें वो पूर्व राज्यपाल के साथ दिख रहे हैं। अब इस ट्वीट के बाद मायने यह भी निकाले जा रहे हैं कि ये मुलाकात क्या जाट वोट को कांग्रेस के खेमे में लाने के मकसद से हुई है।

ऐसे समझिए जाट पॉलिटिक्स के मायने

दरअसल, राजस्थान में जाट पॉलिटिक्स बहुत जरुरी है। अनुमानित तौर पर जाट समाज की हिस्सेदारी राज्य में 10 से 12 फीसदी तक है। राजस्थान में सीकर, झुंझुनूं, नीमकाथाना, नागौर, डीडवाना, कुचामन, जोधपुर, जोधपुर ग्रामीण, जयपुर, जयपुर ग्रामीण, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर, भरतपुर, हनुमानगढ, अनूपगढ़, गंगानगर, बीकानेर, अजमेर, दूदू, ब्यावर, केकड़ी, चुरू, बालोतरा, धौलपुर जिलों में जाट समाज चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने का दमखम रखता है।

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