Up kiran,Digital Desk : दोस्तों, हम अक्सर सुनते थे कि भारत अपनी बिजली की जरूरतों के लिए कोयले (Coal) पर निर्भर है, लेकिन साल 2025 की तीसरी तिमाही ने यह भ्रम पूरी तरह तोड़ दिया है। देश के बिजली क्षेत्र में एक बहुत बड़ा 'टर्निंग पॉइंट' आया है। जुलाई से सितंबर 2025 के बीच जो आंकड़े सामने आए हैं, वो बताते हैं कि भारत अब प्रदूषण वाली बिजली को छोड़कर साफ-सुथरी 'ग्रीन एनर्जी' (Green Energy) की तरफ तेजी से दौड़ पड़ा है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण और विशेषज्ञों की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि देश में अब 51.1% बिजली उत्पादन क्षमता ऐसे स्रोतों से हो रही है जो कोयले या डीजल पर निर्भर नहीं हैं। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक बदलाव है।
कोयला और परमाणु ऊर्जा पिछड़े, अक्षय ऊर्जा ने दिया साथ
जुलाई-सितंबर की तिमाही में एक दिलचस्प बात देखने को मिली। देश में कोयले और परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने की रफ़्तार कम हुई। परमाणु ऊर्जा में तो लगभग 18.6% की गिरावट देखी गई। ऐसे में सवाल था कि देश की बिजली की मांग कैसे पूरी होगी?
यहीं एंट्री हुई हमारे जल (Hydro), सौर (Solar) और पवन (Wind) ऊर्जा की। इन तीनों ने मिलकर ऐसा मोर्चा संभाला कि देश का कुल बिजली उत्पादन कम होने के बजाय 3.6% बढ़कर 48,407 करोड़ यूनिट हो गया। यानी जब पुराने साथी थकने लगे, तो नए खिलाड़ियों ने मैच जिता दिया।
69% नई बिजली सिर्फ सूरज की बदौलत
सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा सौर ऊर्जा यानी सोलर एनर्जी का है। जो नई बिजली क्षमता (New Capacity) जोड़ी गई, उसमें 69% हिस्सा अकेले सोलर का है। डेवलपर्स ने जुलाई में लगने वाले नए टैक्स और चार्ज से बचने के लिए अपने प्रोजेक्ट्स फटाफट पूरे किए, जिसका सीधा फायदा देश को मिला।
जनवरी से सितंबर 2025 के बीच देश ने 38,887 मेगावॉट की नई क्षमता जोड़ी है, जो पिछले साल के मुकाबले लगभग 60% ज्यादा है। यह बताता है कि सरकार और प्राइवेट कंपनियां दोनों ही अब सौर ऊर्जा पर सबसे ज्यादा दांव लगा रही हैं।
अच्छे मानसून का भी मिला फायदा
इस बार इंद्र देवता भी भारत पर मेहरबान रहे। अच्छे मानसून के कारण नदियों और बांधों में पानी लबालब रहा, जिससे जलविद्युत (Hydro Power) का उत्पादन भी शानदार रहा। यही वजह है कि ग्रिड में अब सस्ती और ग्रीन बिजली का फ्लो बढ़ गया है, जो महंगे कोयले की जगह ले रही है।
पैसे की बारिश: निवेशक हुए फिदा
जहां मुनाफ़ा होता है, निवेशक वहीं जाते हैं। रिपोर्ट बताती है कि जुलाई-सितंबर के दौरान अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में लगभग 523 करोड़ डॉलर (हजारों करोड़ रुपये) का निवेश हुआ। यह पिछली तिमाही से दोगुना है। साफ़ है कि दुनिया भर के इन्वेस्टर्स को समझ आ गया है कि भारत का फ्यूचर अब सोलर और विंड एनर्जी में ही है।
कुल मिलाकर, 500.9 गीगावॉट की क्षमता का पार होना और उसमें भी आधे से ज्यादा हिस्सेदारी क्लीन एनर्जी की होना, यह साबित करता है कि भारत ऊर्जा के मामले में 'आत्मनिर्भर' और 'स्मार्ट' बन रहा है।
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