चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा पूर्वोत्तर का बेहद खूबसूरत राज्य। पहाड़ों के बीच हरे भरे जंगल, कलकल की आवाज के साथ बहती नदियां, खूबसूरत झरने, चाय के बागान, रंग बिरंगे फूल और प्राकृतिक संसाधनों का प्रचुर भंडार। यही मणिपुर की विशेषता है। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है। लेकिन कुछ समय पहले इस राज्य को जातीय हिंसा की नजर लग गई थी।
यहां की सबसे बड़ी आबादी मैतेयी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को लेकर 3 मई को जो आग लगी, वह ढाई महीने बाद भी नहीं बुझी है। 20 जुलाई को महिलाओं से बर्बरता का जो वीडियो आया उससे पूरा देश शर्मसार हो गया। मणिपुर पुलिस प्रशासन की थू थू हो रही है। लेकिन जिस एक शख्स पर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं और विपक्ष जिसे खलनायक की तरह पेश कर रहा है, वह है मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह। उनके इस्तीफे की मांग जोर पकड़ रही है।
हिंसा के बीच जून महीने में उनके इस्तीफे की खबर आई थी, लेकिन समर्थक महिलाओं ने सबके सामने उनके इस्तीफे की चिट्ठी को फाड़ दिया और बीरेन सिंह ने भी अपना मन बदल लिया। काम गोपी ने। महिलाओं से बर्बरता का वीडियो वायरल होने के बाद अब एक बार फिर उन पर इस्तीफों का दबाव बढ़ गया है।
आज हम आपको एन बीरेन सिंह की सियासत से जुड़े कुछ अनकही बातें बताने जा रहे हैं। हम आपको बताएंगे कि फुटबॉल का दीवाना और पत्रकारिता की धुन रखने वाला शख्स, राजनीति का धुरंधर और बाद में पूर्वोत्तर राज्य का मणिपुर का पहला मुख्यमंत्री कैसे बना। 1 जनवरी 1961 को साधारण परिवार में जन्में एन बीरेन सिंह का पूरा नाम नांग धूम धाम बीरेन सिंह है।
यहां से किया था ग्रेजुएशन
बचपन से ही फुटबॉल खेलने के शौकीन रहे बीरेन सिंह स्कूल के दिनों में नेशनल लेवल पर फुटबॉल खेलते थे। ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई कांचीपुरम स्थित मणिपुर यूनिवर्सिटी से की। शुरू से ही पत्रकारिता की धुन सवार थी, लेकिन फुटबॉल खेलते खेलते बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में पहुंच गए। बीरेन सिंह तब 18 साल के थे। एक मैच खेल रहे थे, तभी बीएसएफ जालंधर टीम के कोच की नजर उन पर पड़ी और वह बीएसएफ की टीम में चुन लिए गए।
फुटबॉलर रह चुके हैं मणिपुर के सीएम
बहुत कम लोगों को पता होगा कि एन बीरेन सिंह ने 1981 के डूरंड कप का फाइनल मुकाबला भी खेला था और उनकी टीम ने मोहन बागान जैसी हाई प्रोफाइल टीम को हरा कर खिताब पर कब्जा कर लिया था। लेफ्ट बैक पोजीशन से खेलने वाले बीरेन सिंह का डिफेंस कमाल का था। फुटबॉल के प्रति उनकी दीवानगी इसी बात से समझी जा सकती है कि उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे का नाम ब्राजील के मशहूर फुटबॉलर जीको के नाम पर रखा है और घर में उसे प्यार से पेले बुलाते हैं।
विरेंद्र सिंह अपने राज्य के बाहर फुटबॉल खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे। हालांकि लंबे समय तक बीएसएफ में उनका दिल नहीं लगा और सब छोड़कर चले आए। यहां से पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ। पहले पत्रकारिता में डिप्लोमा किया, फिर अपना अखबार निकालने का फैसला किया। लेकिन पैसे की तंगी की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पाया। जिद ऐसी थी कि अखबार शुरू करने के लिए पिता से विरासत में मिली दो एकड़ जमीन बेच दी। देखते ही देखते वीरेंद्र सिंह का अखबार मणिपुर से चर्चित हो गया। वह ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष भी रहे।
बाद में एक कथित राष्ट्र विरोधी खबर के प्रकाशन के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। विषम हालातों के चलते वीरेंद्र सिंह इस पेशे में भी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सके। वह साल दो हज़ार दो था जब वीरेंद्र सिंह ने राजनीति का रुख किया। एक पुराने इंटरव्यू में वीरेंद्र सिंह ने कहा था कि भारतीय सेना के प्रति मणिपुर के लोगों के बढ़ते गुस्से ने उन्हें राजनीति ज्वाइन करने के लिए प्रेरित किया।
एक क्षेत्रीय पार्टी डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी के साथ अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत करने के लिए अगले ही साल वह हैंगआउट सीट से विधायक चुनकर आए। कांग्रेस के दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह की नजर इस उभरते नेता पर पड़ गई। नजदीकियां बढ़ीं तो दो हज़ार चार के विधानसभा चुनावों से पहले वीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। कांग्रेस में शामिल होते ही उन्हें मंत्री पद मिल गया। 2007 में कांग्रेस के टिकट पर फिर से विधानसभा पहुंचे। ओकराम इबोबी सिंह की सरकार में पुलिस, सिंचाई और खेल समेत कई अहम विभाग सौंप दिए गए। 2012 में लगातार तीसरी बार विधानसभा पहुंचे, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने अपने सबसे चहेते नेता को मंत्रिमंडल से बाहर कर। जिस इबोबी सिंह से उन्होंने सियासत के गुर सीखे, बाद में उन्हीं से दुश्मनी हो गई।
खटपट इतनी बढ़ गई कि बगावत तक आ गई और 2016 में बीरेन सिंह ने अब कांग्रेस से अपनी राहें अलग कर ली। हालांकि एक समय ऐसा भी था जब एन बीरेन सिंह को इबोबी का संकटमोचक कहा जाता था। अक्टूबर 2016 में बीरेन सिंह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। अगले साल की शुरुआत में चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें चुनाव प्रबंधन समिति का प्रवक्ता और सह संयोजक नियुक्त कर दिया। मणिपुर का सूखा खत्म करने के लिए बीजेपी को एक बड़े नेता की तलाश थी, जो बीरेन सिंह के रूप में पूरी हुई।
बीरेन सिंह को बीजेपी में लाने का श्रेय हिमंता बिस्वा सरमा को दिया जाता है क्योंकि दोनों के बीच कांग्रेस के जमाने से अच्छी दोस्ती है। बीरेन सिंह के आने के बाद साल दो हज़ार 17 के चुनाव में वो हुआ जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। पहली बार मणिपुर में कमल खिला। पांच। मार्च 2 हज़ार 17 को गठबंधन सरकार में बीरेन सिंह मणिपुर के पहले भगवा मुख्यमंत्री बने।
2022 के चुनावों में लगातार दूसरी बार मणिपुर में भगवा लहराया और बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने एक बार फिर बीरेन सिंह को ही मुख्यमंत्री का ताज पहनाया। वीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में न सिर्फ बीजेपी की दोबारा सरकार बनी बल्कि दो हज़ार 17 के मुकाबले 11 सीटों का फायदा हुआ। राष्ट्र के प्रति असाधारण कार्य के लिए एन बीरेन सिंह को साल दो हज़ार 18 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने चैंपियंस ऑफ चेंज के खिताब से सम्मानित किया। पहले पांच साल के कार्यकाल में एन बीरेन सिंह का काम की खूब तारीफ की गई। उग्रवाद प्रभावित बहु जातीय राज्य के अंदर शांति लाने और घाटी और पहाड़ियों के बीच लोगों के बीच विभाजन को पाटने का पूरा क्रेडिट बीरेन सिंह और उनकी सरकार को मिला। लेकिन 2023 के मई महीने में मैतेयी और नागा कुकी समुदायों के बीच झड़प ने बीरेन सिंह को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।
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