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भारत-नेपाल सीमा की संवेदनशीलता को लेकर लंबे समय से आवाजें उठती रही हैं, लेकिन सीतामढ़ी से सामने आया एक ताजा मामला न सिर्फ प्रशासनिक सतर्कता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि देश की सुरक्षा एजेंसियों को भी कटघरे में लाकर खड़ा करता है।

नेपाल के सर्लाही जिले की रहने वाली शबनम बेगम ने भारत में शबनम आरा के नाम से खुद को एक वैध नागरिक साबित कर दिया, और इससे भी आगे बढ़ते हुए एक निजी अस्पताल तक खोल लिया। यही नहीं, उन्होंने करोड़ों की संपत्ति खरीदी, बैंक खाते खुलवाए, मतदाता पहचान पत्र बनवाया और भारतीय चुनावों में मताधिकार तक का इस्तेमाल किया।

पहचान की बुनियाद पर खड़ा फर्जी साम्राज्य

इस मामले का खुलासा तब हुआ जब सुरसंड थाना क्षेत्र के बेलहिया निवासी संतोष कुमार ने कोर्ट में एक आपराधिक परिवाद दाखिल किया। उन्होंने आरोप लगाया कि शबनम ने फर्जी दस्तावेजों के ज़रिये भारतीय नागरिकता हासिल की और इसमें सीतामढ़ी के चिकित्सक डॉ. शिवशंकर महतो की भी मिलीभगत रही।

शिकायत के मुताबिक, शबनम ने न सिर्फ आधार और पैन कार्ड जैसे संवेदनशील दस्तावेज बनवाए, बल्कि उनका नाम सीतामढ़ी विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र संख्या 175 की मतदाता सूची में क्रम संख्या 649 पर दर्ज है। यानी, वह न केवल एक विदेशी नागरिक होते हुए भारत की वोटर बन गई, बल्कि सभी सरकारी योजनाओं और अधिकारों का भी लाभ उठा रही है।

डॉक्टर बनीं बिना डिग्री के?

सबसे चौंकाने वाला आरोप यह है कि शबनम आरा खुद को स्त्री रोग विशेषज्ञ बताती हैं, जबकि उनके पास न तो MBBS की डिग्री है और न ही महिला रोगों में कोई विशेषज्ञता प्रमाणित होती है। उनके अस्पताल के बोर्ड पर लिखा है “BAMS, स्त्री रोग विशेषज्ञ”, लेकिन BAMS से इस विशेषता का दावा कानूनी रूप से मान्य नहीं होता।

परिवाद में यह भी दावा किया गया है कि शबनम पूरी तरह अशिक्षित हैं और फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर लोगों का इलाज कर रही हैं, जो सीधे तौर पर जनता की जान के साथ खिलवाड़ के समान है।

नेपाल की भी नागरिक, भारत में भी मालिक

जांच में यह सामने आया कि शबनम नेपाल की मतदाता सूची में भी दर्ज हैं। उन्होंने वहां के मलंगवा और काठमांडू में भी जमीनें खरीदी हैं और नागरिकता का लाभ ले रही हैं। यह दोहरी नागरिकता का मामला है, जो भारत के कानून के तहत अमान्य और दंडनीय है।

इतना ही नहीं, भारत में उन्होंने करोड़ों की संपत्ति की रजिस्ट्री कराई, जबकि किसी भी विदेशी नागरिक को भारत में अचल संपत्ति खरीदने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की पूर्व अनुमति जरूरी होती है। यानी, यह केवल दस्तावेज़ी धोखाधड़ी नहीं, बल्कि आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा गंभीर उल्लंघन है।

प्रशासन की चुप्पी, सुरक्षा एजेंसियों की चूक

शिकायतकर्ता संतोष कुमार का साफ कहना है कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि सीमावर्ती इलाकों में हो रहे संगठित घुसपैठ और दस्तावेजी अपराध की बानगी है।

जब एक विदेशी महिला इतने बड़े स्तर पर भारत में जड़ें जमा सकती है, डॉक्टर बनकर अस्पताल चला सकती है और मतदाता तक बन सकती है, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था में दरार का संकेत है।

चुनाव आयोग और गृह मंत्रालय के लिए चेतावनी

इस समय चुनाव आयोग देशभर में मतदाता सूचियों से फर्जी और विदेशी नाम हटाने का अभियान चला रहा है। ऐसे में यह मामला एक केस स्टडी के तौर पर देखा जाना चाहिए, जो न सिर्फ अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि सीमा पार से चल रही दस्तावेज़ी घुसपैठ की गहराई को भी उजागर करता है।

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