सावन की फुहारों और रिमझिम बारिश के लिए हो जाइए तैयार

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तुझे गीतों में ढालूंगा सावन को आने दो..तेरी दो टकियो की नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए.. सावन का महीना पवन करे शोर.. दिल में आग लगाए सावन का महीना.. सावन जो आग लगाए, उसे कौन बुझाए.. अब तक आप समझ ही गए होंगे यह फिल्मी गानों की लाइनें क्यों लिखी जा रही हैं, नहीं समझे । चलिए हम ही बता देते हैं । अरे भाई सावन महीना आने वाला है ।

जी हां सावन 6 जुलाई यानी सोमवार से लग रहा है, तैयार हो जाइए सावन की फुहारों और रिमझिम बारिश और मौसम का खूबसूरत नजारा देखने के लिए । सावन के महीने में चारों ओर हरियाली छा जाती है मोर भी नृत्य करने लगते हैं । मन बेकरार होने को व्याकुल रहता है । वैसे यह भी सच है कि बदलते परिवेश में सावन जैसा एहसास अब कम ही होने लगा है ।

न पहले जैसा सावन मन में आग लगाता है और न दिल मचलता है । गांवों में भी सावन की बहारें भी कम दिखती हैं । सावन मास धार्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । यह पूरा महीना भगवान शिव जी को समर्पित रहता है । सावन चातुर्मास मास का प्रथम महीना होता है। सावन में सोमवार के व्रत और भगवान शिव का अभिषेक करने से सभी प्रकारों के कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है ।

इस बार सावन के महीने में पांच सोमवार आएंगे। पहला 6 जुलाई को पहला सोमवार, दूसरा 13 जुलाई, तीसरा 20 जुलाई, चौथा 27 जुलाई और पांचवां सोमवार 3 अगस्त को है । मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और पृथ्वी की बागडोर भगवान शिव संभालते हैं ।

चातुर्मास में भगवान शिव पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान कर आशीर्वाद देते हैं । इसलिए चातुर्मास में सावन के महीने का विशेष महत्व है। सावन के सोमवार का व्रत दांपत्य जीवन के लिए शुभ फलदायी माना गया है । आपको बता दें कि सावन का पहला सोमवार 6 जुलाई को है।

इस दिन प्रतिपदा तिथि सुबह 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगी इसके बाद द्वितीया तिथि आरंभ होगी, इस दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे । हर साल इस महीने में लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की विशेष रूप से आराधना और अभिषेक करते थे, लेकिन इस साल कोरोना के कारण मंदिरों में होने वाले जलाभिषेक पर रोक रहेगी।

शिवभक्त सावन सोमवार को व्रत रखते हैं–

बता दें कि सावन मास भगवान शिव जी का प्रिय महीना होता है । इसलिए सावन के महीने शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है । भक्त सावन सोमवार के व्रत रखते हैं । इस दिन को सावन की सोमवारी के नाम से जाना जाता है ‌। कहा जाता है इस व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं ।

सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से भी सावन सोमवार व्रत रखने की मान्यता है । सावन के महीने में भक्त पवित्र नदियों से जल लाते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं । सावन के महीने को लेकर ऐसी धार्मिक मान्यता भी चली आ रही है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था ।

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया । पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही भगवान शंकर महादेव के लिए यह विशेष हो गया ।

कोरोना के चलते कांवड़ यात्रा पर लगाई रोक-

महामारी के चलते इस बार श्रद्धालु कांवड़ नहीं ला सकेंगे । बता दें कि सावन के महीने में पूरे देश भर में श्रद्धालु कावड़ यात्रा करते हैं । उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा में कांवड़ यात्रियों की सबसे अधिक भीड़ देखी जाती है । लेकिन इस बार पहली बार ऐसा हो रहा है कि कोरोना की वजह से श्रद्धालु कांवड़ नहीं जा सकेंगे ।

सावन में पूरे एक महीने श्रद्धालुओं के बम बम बोल उद्घोष सुनाई पड़ते हैं ।‌ साथ ही कांवड़ मेले का आयोजन भी नहीं होगा । कांवड़ यात्रा केेे बारे में ऐसी मान्यता चली आ रही है कि भगवान परशुराम ने शिव मंदिर बनाने का संकल्प लिया था । इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करने के लिए पत्थर लाने वह हरिद्वार गंगा तट पर पहुंचे ।

हरिद्वार के गंगातट से भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया । तब से ही कहा जाता है कि परशुराम ने हरिद्वार से पत्थर लाकर उसका शिवलिंग पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया तब से कावड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है । सावन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु कांवड़ में पवित्र जल लेकर एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान जाकर शिवलिंगों पर जलाभिषेक करते हैं ।

सावन मास में झूला झूलने की रही है परंपरा–

सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेसी घर आया । इसी प्रकार के सावन में झूलों को लेकर हजारों गीत लिखे गए हैं । सावन में अगर झूलों की बात न हो तो यह माह पूरा नहीं होता है । हमारे देश में सावन मास में झूलों का पेड़ों की टहनियों में पड़ जाना पुरानी परंपरा रही है ।‌ महिलाएं और बच्चे, बड़े सभी झूले के आनंद में सराबोर हो जाते हैं ।

झूले को झोंका देते हुए महिलाएं मल्हार गाती थी और हल्की बारिश की फुहारों में झूले पर लंबी लंबी पैंग बढ़ाकर झूले को तेज करते हुए पेड़ों की शाखाओं को छू लेना बड़ा ही सुखद हो जाता है । बच्चे, बूढ़े और जवान अपने अपने हम उम्र साथियों के साथ पूरे सावन माह का भरपूर आनंद में ही बीतता है । हमारी हिंदी फिल्मों में भी सावन के झूलों को लेकर कई गाने लिखे गए हैं । लेकिन यह परंपरा धीरे-धीरे कम होती जा रही है ।

आज के आधुनिक युग में युवा पीढ़ी शायद झूलों का नाम भी नहीं जानती होगी । वो झूले, मल्हार, सखा सहेलियों का बचपन सब कुछ ओझल सा हुआ जा रहा है। अब लोगों को पता ही नहीं चलता कि सावन कब आकर गुजर जाता है। अब वही बचपन आधुनिक खेलों में उलझकर रह गया है। इंसान की जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई है कि उसे अब इन चीजों की परवाह नहीं रहती। इसी तरह सावन के झूले भी धीरे-धीरे इतिहास बनने की ओर अग्रसर हैं । आओ सावन मास में झूला झूलने की परंपरा को एक बार फिर वापस लें आए ।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार 

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