सरकार ने कुल मौजूद कोविड टीके में से 25 फीसद निजी क्षेत्र के लिए रिजर्व कर रखी हैं। लेकिन तीस मई तक टीकाकरण का एनालिसिस बताता है कि निजी सेंटर्स पर केवल 7.5 फीसद वैक्सीन लगाई गईं। कोविन पर उपलब्ध 750 जिलों में से तकरीबन 80 जिले ही ऐसे हैं जहां निजी सेंटर्स पर 10% से अधिक टीकाकरण हुआ।
केवल सात प्रदेशों/केंद्रशासित प्रदेशों में निजी सेक्टर ने 10 फीसद से अधिक डोज लगाई हैं। निजी सेक्टर का ध्यान कुछ शहरी इलाकों तक सीमित रहा। देश के महानगरीय क्षेत्रों के केवल 25 जनपदों में ही पूरे देश का 54% निजी टीकाकरण हुआ है।
80 फीसद से अधिक जनपदों में सरकारी क्षेत्र ने 95 फीसदी डोज लगाई हैं। आधे से अधिक जिले ऐसे हैं जहां प्राइवेट सेक्टर की हिस्सेदारी 1% से भी कम है, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों और पूर्वोत्तर में। प्राइवेट अस्पतालों में सबसे अधिक टीकाकरण दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई, कोलकाता और चेन्नै जैसे बड़े शहरों में हुआ है। बेंगलुरु नगर निगम के वैक्सीनेशन में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा (44 प्रतिशत) रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्राइवेट हॉस्पिटल टीका लगाने में नाकाम रहें।
इस विश्लेषण के बाद प्रश्न उठता है कि प्राईवेट सेक्टर को 25 प्रतिशत वैक्सीन क्यों दी जाएं जब वे असल में उसकी आधी भी नहीं लगा पा रहे। एक प्रकार से ये कोटा अर्द्धशहरी और ग्रामीण आबादी के साथ भेदभाव जैसा लगता है क्योंकि प्राइवेट सेक्टर का टीकाकरण तकरीबन पूरी तरह से शहरी इलाकों, उसमें भी बड़े शहरों तक सीमित है। अदालत भी इसे लेकर चिंता जाहिर कर चुका है।