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यूक्रेन युद्ध के बाद से ही दुनिया में जिन दो देशों के मजबूत संबंधों की चर्चा है वो है भारत और रूस। भारत और रूस की ये दोस्ती सालों पुरानी है और जंग के इस माहौल में भी बरकरार है।

एक और जहां अमेरिका समेत तमाम मजबूत पश्चिमी देशों ने रूस की कमर को तोड़ने के लिए तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी तो वहीं भारत ने रूस के साथ अपने कारोबार को बढ़ाकर मुसीबत के वक्त रूस का साथ देने का निर्णय लिया।

मगर अब यही बढ़ा हुआ कारोबार अब इन दोनों देशों की दोस्ती के बीच आ गया है। भारत और उसके बीच रुपए का एक ऐसा मसला खड़ा हो गया है जिससे अगर रहते ना सुलझाया गया तो दोनों देशों के लोग मुश्किल पड़ सकते हैं और इसका फायदा चीन उठा सकता है।

रुस ने हल की सबसे बड़ी समस्या

आज हम आपको बताएँगे कि कैसे भारत और उसके बीच का व्यापार इन दोनों देशों के बीच कड़वाहट पैदा कर रहा है। दरअसल पिछले साल फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तब अमेरिका और उसके ग्रुप के सहयोगी देशों ने एक के बाद एक रूस पर कई तरह की आर्थिक पाबंदियां लगा दी थी।

अमेरिका की कोशिश थी कि इन पाबंदियों से रूस की कमर चरमरा जाए और उसके लिए यूक्रेन की जंग को लंबा खींचना मुश्किल हो जाए। लेकिन रूस ने इन पाबंदियों की काट खोज ली। उसने कच्चे तेल और गैस की बिक्री के लिए यूरोप के बाहर नए ग्राहक खोज लिए।

रूस का पुराना दोस्त भारत उससे कम दामों में कच्चा तेल खरीदने को राजी हो गया। लेकिन अमेरिका ने एक और चाल चली उसमें रूस को इंटरनॅशनल पेमेंट सिस्टम यानी स्विफ्ट से बाहर करवा दिया।

यानी अब रूस अमेरिकी मुद्रा डॉलर में कारोबार नहीं कर सकता। जबकि इंटरनॅशनल मार्किट में डॉलर ही कारोबार की मुख्य मुद्रा है। अमेरिका की साल की काट खोजने के लिए भारत और रूस के बीच रुपया रूबल समझौता हुआ। यानी भारत और उसके बीच का व्यापार अब इन दोनों देशों की मुद्राओं में ही हो रहा है। लेकिन अब यही रुपया रूबल समझौते का फॉर्म्युला भारत और रूस दोनों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है।

दरअसल भारत ने इस दौरान रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद लिया। रूस अब सऊदी अरब और इराक को पछाड़कर भारत को कच्चा तेल सप्लाई करने वाला नंबर वन देश हो गया है।

भारत और रूस के बीच व्यापारिक असंतुलन पैदा हो गया। भारत रूस से जितना सामान खरीद रहा है उतना उसे बेच नहीं पा रहा। लिहाजा रूस के पास रुपए का बहुत बड़ा भंडार इकट्ठा हो गया है जिसका उपयोग वो कर नहीं पा रहा।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस के पास इस वक्त 147 अरब डॉलर की कीमत की रुपए की मुद्रा इकट्ठे हो गई है जो उसके लिए किसी काम की नहीं है।

जबकि युद्ध के चलते रूस का रक्षा खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। जानकारी के मुताबिक रूस ने साल दो हजार बाईस में रक्षा बजट पर पाँच दशमलव पाँच एक रुबल यानी अरब डॉलर खर्च किए हैं।

ये रिपोर्ट कहती है कि भारत के साथ रूस का व्यापार तेजी से असंतुलित हो रहा है। उसको भारत का निर्यात अपने बढते आयात के साथ पकड नहीं पा रहा है। लेकिन रूस में आपने चालू खाते के अधिशेष को रुपए में बचाने की भी एक सीमा है।

रूस कई बार भारत से इस परेशानी का समाधान निकालने के लिए कह चुका है लेकिन अभी तक ऐसा कोई तोड़ नहीं निकल सका है जो उसकी परेशानी को खत्म कर सके।

दरअसल ग्लोबल ट्रेड में भारत की हिस्सेदारी बस दो फीसदी की है और रुपया पूरी तरह से कन्वर्टेबल भी नहीं है। भारत और उसके बीच व्यापार में बात बस कच्चे तेल तक ही सीमित नहीं है। हाल के दिनों में भारत ने रूस से कोयले और सूरजमुखी के तेल और फर्टिलाइजर का आयात भी जमकर किया है।

शुरू होने के बाद से भारत से रूस को होने वाले निर्यात में ग्यारह दशमलव छह फीसदी की ही वृद्धि हुई है जबकि रूस से आयात में पाँच सौ फीसदी की बढोतरी हुई है।

भारत ने इस दौरान रूस को दो दशमलव आठ अरब डॉलर का निर्यात किया है जबकि रूस ने भारत को इकतालीस दशमलव पाँच छह अरब डॉलर का निर्यात किया है। भारत के साथ व्यापार करने में रूस को जो परेशानी आ रही है वैसी परेशानी चीन के साथ नहीं है।

चीन उठा रहा भरपूर फायदा

चीन भी अमेरिकी पाबंदियों को बताकर सस्ती दरों पर जमकर रूस का कच्चा तेल खरीद रहा है। चीन ने पिछले साल की तुलना में लगभग इक्यावन प्रतिशत ज्यादा रूसी तेल खरीदा है। इस दौरान चीन ने कुल अट्ठासी अरब डॉलर का तेल आयात किया है। उनमें से ज्यादातर का भुगतान चीनी मुद्रा यानी युआन में किया गया है।

मार्च दो हजार तेईस में युआन ने चीन के लिए व्यापार में इस्तेमाल होने वाली मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर को भी पीछे छोड दिया। यानी रूस और चीन के बीच का व्यापार चीन की मुद्रा युआन में ही आगे बढ़ चुका है। जिससे चीन को फायदा पहुंचना शुरु हो गया।

लेकिन भारत के साथ तस्वीर उलट है। भारतीय रुपया रूस के किसी काम नहीं आ रहा। भारत के व्यापार में भारत की मुद्रा रुपया एक समस्या बन गया है जिसका जल्द से जल्द समाधान खोजना बेहद जरूरी है।
 

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