अगर अमेरिका से युद्ध हुआ तो ये शक्तिशाली देश करेंगे ईरान की मदद, जानिए किसका साथ देगा भारत

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नई दिल्ली॥ ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी पर अमेरिकी हमले का वीडियो वायरल हो रहा है। बताते हैं ये वीडियो पेंटागन ने जारी किया है और इसके माध्यम से अमेरिका अपने फायर पावर का संदेश देने की कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी ईरान को डराने की कोशिश की है।

उन्होंने बताया कि अगर ईरान ने हमला किया तो अमेरिका का नया हथियार समय का इंतजार कर रहा है। वहीं ईरान अमेरिका पर डरपोक होने का तंज कसकर सही समय, सही स्थान पर बदला लेने की चेतावनी दे रहा है। रूस व चाइना अमेरिका-ईरान के टकराव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं।

दोनों देशों की प्रतिक्रिया पर न सिर्फ अमेरिका की, बल्कि विश्व के देशों की नजरें हैं। अमेरिका के बाद दोनों देशों की सैन्य क्षमता अहम स्थान रखती है। दोनों न केवल परमाणु शक्ति संपन्न हैं, बल्कि हाइपरसोनिक मिसाइल और लंबी दूरी की मारक क्षमता रखते हैं। रूस और चीन के बाद फायर पावर के मुद्दे में इस्राइल अहम है। इस्राइल के पीएम नेतन्याहू हालात पर गंभीरता से नजर रख रहे हैं।

चारों ओर दुश्मनों से घिरा इस्राइल यदि जंग जैसे हालात बनते हैं तो उसके द्वारा अमेरिका का साथ देने की उम्मीद है। फ्रांस की फायर पावर काफी अच्छी है। ब्रिटेन समेत पूरा यूरोप अभी सुरक्षात्मक और युद्ध जैसे हालात रोकने के प्रयास में है। लेकिन युद्ध जैसी स्थिति आई तो अमेरिका का साथ दे सकते हैं। हिंदुस्तानी सामरिक विशेषज्ञों की मानें तो विश्व का पूरा सैन्य संतुलन इन्हीं देशों के इर्द गिर्द घूम रहा है।

अमेरिका सीरिया में तख्तापलट चाहता था। राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से हटाने के लिए अमेरिका ने पूरी कोशिश की, लेकिन रूस ने कैस्पियन सागर से मिसाइल फायर करके अमेरिका के सपने पर पानी फेर दिया। रूस ने अपने उन्नत जंगी जहाजों, फाइटर जेटों को सीरिया के आकाश में भेजा और एस-400 ट्रायम्फ को सीरिया में तैनात करके उसकी सुरक्षा की। रूस से ईरान को बहुत उम्मीद है। ईरानी डिप्लोमैट रूस के साथ आने पर चीन का साथ पाने का भरोसा कर सकते हैं, क्योंकि चीन और अमेरिका के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं।

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ईरान सीरिया के बहुत करीब है। इस समय नाटो सदस्य देश तुर्की से उसकी अच्छी निभ रही है। जनरल कासिम सुलेमानी ने लीबिया के हिजबुल्लाह, यमन के हूती से ईरान को मजबूती से जोड़ा था। ईरान को दोनों का साथ मिल सकता है। हमास जैसे संगठन भी ईरान का साथ दे सकते हैं। अंत में ईरान की भौगोलिक स्थिति उसके बहुत पक्ष में है। ईरान तीन ओर पहाड़, एक तरफ समुद्र से घिरा है। स्टेट ऑफ होरमुज सीधे उसके नियंत्रण में रहता है। जहां से वह अमेरिका और उसके सहयोगियों का व्यापार, कारोबार तक रोक सकता है। ईरान का मध्य का हिस्सा बड़ा रेगिस्तान(मरुस्थल) है। ये भौगोलिक स्थिति जंग जैसी स्थिति में उसे काफी लाभ पहुंचाती है।

हिंदुस्तान किसी भी दशा में युद्ध का पक्षधर नहीं है। नई दिल्ली निरंतर विश्व से शांति के रास्ते पर चलने की अपील कर रही है, लेकिन अमेरिका के साथ ईरान का टकराव बढ़ने पर हिंदुस्तान जैसे विकासशील देश बड़ी हानि उठा सकते हैं। हिंदुस्तान में उदारीकरण के बाद कारोबार, बाजार वैश्विक बाजारों से जुड़ चुका है। हिंदुस्तान को दुनिया के देशों के कारोबारियों से हिंदुस्तान में निवेश की उम्मीद है। इसके अलावा हिंदुस्तान ऊर्जा और हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में दुनिया के देशों से निर्यात पर निर्भर है।

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जंग जैसे हालात में हिंदुस्तान पर अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की चिंता रहेगी। करीब 4000 हिंदुस्तानीय नागरिक ईरान में रहते हैं। फारस की खाड़ी और तटीय क्षेत्र में भी हिंदुस्तानीयों की अच्छी तादाद है। खाड़ी देशों और पश्चिम एशिया में 80 लाख से एक करोड़ हिंदुस्तानीयों के होने का अनुमान है। कोई भी युद्ध जैसे हालात न केवल हिंदुस्तान की सुरक्षा संबंधी चिंता बढ़ा सकता है, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडारण पर भी इसका विपरीत असर पड़ सकता है। कच्चे तेल की कीमत भी आसमान छू सकती है और इससे हिंदुस्तान की विकास योजनाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

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