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Edited by:- Subhash Chandra

वन विभाग में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं, पर ये प्रकरण आपको चौंका देगा। हम बात कर रहे यूपी वन निगम के एक ऐसे अधिकारी की, जो कई साल पहले सेवानिवृत होने के बाद भी सेवा में दबंगई से बना हुआ है। इसकी ढेरो शिकायते लंबित है। विभागीय जानकारों का कहना है कि जांच के बाद वन महकमे के बड़े बड़े अफसर भी इसके कारनामो से जुड़ी फ़ाइल पर कार्रवाई की हिम्मत ही नही जुटा पा रहे हैं। विभाग के अफसरों का ही संरक्षण है कि इस कारिंदे की तैनाती सीएम के गृह जनपद गोरखपुर में डीसीएम के पद पर की गई है।Devender Singh - UP Forest Corporation

आरोपी कारिंदे दविंदर सिंह (बदला नाम) के रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान जब प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू थी, उस दौरान बैक डेट में उन्हें लखनऊ मुख्यालय में तैनाती दे दी गयी। बैक डेट में किये गए ट्रांसफर को लेकर यूपी किरण में खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई जो शासन से लेकर वन विभाग और वन निगम के आलाधिकारियों के संज्ञान में आयी, पर विभाग के बड़े अफसरों ने उसका कोई संज्ञान नही लिया।

आपको बता दें कि भ्रष्ट अधिकारी दविंदर सिंह को लेकर विभाग में आये दिन भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतें आती रहती हैं , वहीँ इस बाबत निगम के प्रबंध निदेशक संजय सिंह का कहना है कि शिकायतें तो बीस साल से आ रही हैं। कार्रवाई की बात पर प्रबंध निदेशक संजय सिंह एक कुटिल मुस्कान के साथ बात को टाल जाते हैं। जबकि निगम के बड़े और सीनियर अफसरों की जाँच में दविंदर सिंह को दोषी पाया गया। बावजूद इसके निगम से लेकर शासन तक इस शातिर अफसर दविंदर सिंह के खिलाफ किसी भी तरह कार्रवाई संस्थित नहीं हो सकी। वहीँ सूत्रों की मानें तो दविंदर सिंह से संबंधित फाइल शासन में कार्रवाई के उच्चाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत हुई तब उस फाइल को ये कहकर लौटा दिया गया कि चुनाव के बाद प्रस्तुत करें। फ़िलहाल भ्रष्ट अधिकारी दविंदर सिंह के विरुद्ध कार्रवाई शासन में लंबित है।

कैसे होगी दविंदर सिंह पर कार्रवाई

दविंदर सिंह के सर्विस से संबंधित रिकॉर्ड निगम मुख्यालय से गायब होने की खबर पहले ही चर्चा में आ चुकी है। ये बात जाँच अधिकारियों ने अपनी अपनी रिपोर्ट में कही है ऐसे में सवाल ये उठता है कि दविंदर सिंह के विरुद्ध कार्रवाई कैसे होगी। हालाँकि जाँच में दविंदर सिंह पर लगे भ्रस्टाचार के लगभग सभी आरोपों की पुष्टि जाँच अधिकारियों ने कर दी है। फिर भी अब तक कार्रवाई न होने पर निगम से लेकर शासन तक सवालों के घेरे में है।

आपको बता दें कि दविन्दर सिंह विभाग में देवेंदर सिंह (Devendra Singh) के नाम से​ नियुक्ति पाए थे। पर कागजातों की हेराफेरी ने चमत्कारी ढंग से उनकी सिर्फ पहचान ही नहीं बल्कि जन्मतिथि भी बदली। उनका सर्विस पीरिएड एकाएक दस साल बढ गया और वह सीएम योगी के गृह जनपद में कार्यभार के साथ मुख्यालय में भी पद से नवाजे गए। विभागीय जानकारों का कहना है कि पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान ने जाते जाते दविंदर सिंह पर अपनी मेहरबानी दिखायी। हालांकि प्रबंध निदेशक इसके लिए राजी नहीं थे। बावजूद इसके आला अफसरों के दबाव में वह झुक गए। हैरान करने वाली बात ये है कि दविंदर सिंह की तैनाती मुख्यालय में जिस पोस्ट पर की गयी है वो पोस्ट मौजूद ही नही है। (Uttar Pradesh Forest Corporation)

चुनाव आचार संहिता के बावजूद ट्रांसफर

विभाग के ही विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि दविंदर सिंह का ट्रांसफर 12 जनवरी 2022 की शाम को किया गया लेकिन डिस्पैच 4 जनवरी 2022 दर्ज किया गया है लेकिन प्रबंध निदेशक संजय सिंह का यह कृत्य विभाग द्वारा भेजे गए मेल की तारीख से साबित हो जायेगा। यदि इसकी निष्पक्ष जाँच कराई जाये तो ये स्वतः स्पष्ट भी हो जायेगा। ऐसे में जब प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू हो, वन निगम के प्रबंध निदेशक संजय सिंह का ये दुस्साहसिक कदम बताया जा रहा है। हालाँकि प्रबंध निदेशक संजय सिंह पर पहले से भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं।

बहरहाल बतौर जांच अधिकारी, मामले की पड़ताल कर रहे महाप्रबंधक एसके शर्मा अपनी जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके तो प्रकरण की दोबारा जांच करायी गयी। जांच रिपोर्ट फिर शासन को प्रेषित की गयी। पर वह भी फाइलों में ही दबकर रह गई। कार्रवाई शून्य है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दविंदर सिंह (Davinder Singh) की तरफ से अपने नाम और जन्मतिथि परिवर्तन के लिए कोई प्रत्यावेदन नहीं दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि परिवर्तन के लिए प्रत्यावेदन नहीं दिया गया तो फिर यह परिवर्तन कैसे हुआ? क्या विभाग इसकी जांच कराएगा? फिलहाल इस सवाल पर अधिकारी खामोश हैं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)

आपको बता दें कि यूपी किरण ने जब इसका खुलासा किया था, तो निगम में हड़कम्प मच गया था। प्रकरण की जाँच के लिए भारतीय वन सेवा के वन निगम (जीएम स्तर ) के अधिकारी सुधीर शर्मा को नियुक्त कर दिया गया था। पर जांच के दौरान पता चला कि आरोपी दविंदर सिंह (परिवर्तित नाम) का शैक्षणिक रिकॉर्ड मुख्यालय से गायब हो चुका है। इसमें ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि मामले की FIR करवाने की जगह आरोपी दविंदर सिंह (Davinder Singh) से ही उसके सारे शैक्षणिक रिकॉर्ड मांगे गये हैं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)

दविंदर सिंह अपनी सफाई में कहते हैं कि उनके नाम और जन्मतिथि में गड़बड़ी विभाग की गल्ती से हुई है। उसमें उनका कोई किरदार नहीं है। उन्होंने 1983 में नौकरी शुरू की, इस बीच उनका कई बार स्थानांतरण भी हुआ और कई बार वरिष्ठता सूची भी जारी हुई लेकिन तब-तक दविंदर सिंह (परिवर्तित नाम ) को अपना नाम गलत होने का एहसास तक नहीं हुआ था। यह भी दविंदर सिंह की मंशा पर सवाल खड़े करता है। फिर अचानक 2011 में उनका नाम बदल दिया जाता है। इतना ही नहीं नाम बदलने के साथ-साथ उनकी जन्मतिथि भी 1954 से बदलकर 1964 कर दी जाती है। फिलहाल दविंदर सिंह (Davinder Singh) जन्मतिथि मामले में भी विभाग को ही दोषी मानते हैं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)

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