Up kiran,Digital Desk : पश्चिम बंगाल की राजनीति और 'शांति' का दूर-दूर तक नाता नहीं दिखता। ताज़ा मामला वोटर लिस्ट के अपडेशन (SIR - स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) से जुड़ा है, जिसने सोमवार की रात कोलकाता की सड़कों को अखाड़े में बदल दिया।
बात इतनी बढ़ गई कि राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEO) के दफ्तर के बाहर ही तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। पुलिस को बीच-बचाव करने के लिए लोहे के बैरिकेड्स लगाने पड़े और कड़ी घेराबंदी करनी पड़ी ताकि हालात बेकाबू न हो जाएं।
बीजेपी का आरोप: "वोटर लिस्ट से छेड़छाड़ करने आए हैं गुंडे"
हंगामे के बीच बीजेपी की दक्षिण कोलकाता जिला अध्यक्ष, तमोघना घोष ने टीएमसी पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने मीडिया के सामने चिल्लाकर कहा कि जिसे आप भीड़ समझ रहे हैं, वो असल में टीएमसी के भेजे हुए गुंडे हैं।
उन्होंने कहा, "ये बीएलओ (BLO) नहीं हैं। ये गुंडागर्दी करने आए हैं और चुनाव आयोग के दफ्तर में घुसकर डेटा के साथ छेड़छाड़ करना चाहते हैं। देखिए इनकी हरकतें! हमने इन्हें अंदर जाने से रोका है।"
शिक्षकों का दर्द: "हमारा नाम कटने वाला है"
वहीं दूसरी तरफ, जो लोग प्रदर्शन कर रहे थे, उनका दावा कुछ और ही था। इनमें बड़ी संख्या में शिक्षक मौजूद थे। एक प्रदर्शनकारी शिक्षक ने कहा कि वे बीएलओ के समर्थन में यहां आए हैं।
मुर्शिदाबाद से आए एक शिक्षक ने डर जताते हुए कहा, "देखिए, ये जो एसआईआर (SIR) की प्रक्रिया दो महीने में निपटाई जा रही है, यह एक साजिश है। हमें डर है कि बिहार की तरह बंगाल में भी करोड़ों वोटरों के नाम लिस्ट से काट दिए जाएंगे। जब तक अधिकारी हमसे नहीं मिलते, हम यहां से नहीं हटने वाले।"
बीएलओ की मौत से भी उपजा है गुस्सा
इस गुस्से की एक बड़ी वजह वह काम का दबाव है, जो बीएलओ (Booth Level Officers) झेल रहे हैं। खबर दिल दहलाने वाली है कि 4 नवंबर को काम शुरू होने के बाद से अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है। अधिकारियों ने खुद माना है कि इनमें से दो लोगों ने काम के तनाव में आत्महत्या कर ली और एक की मौत संदिग्ध हालत में हुई।
सोमवार दिन में भी बीएलओ ने प्रदर्शन किया था और कहा था कि उन पर इतना काम लाद दिया गया है जिसे इंसान कर ही नहीं सकता। जब वे अपनी बात रखने अंदर घुसने लगे तो पुलिस के साथ उनकी भी झड़प हुई थी।
कुल मिलाकर, बंगाल में एक बार फिर वोटर लिस्ट को लेकर विश्वास और अविश्वास की लड़ाई सड़क पर आ गई है। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग इस 'आग' को कैसे शांत करता है।
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