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Up Kiran, Digital Desk: कानून के रखवालों के खिलाफ जब खुद इंसाफ की तलाश करनी पड़े, तो आम नागरिक का भरोसा सबसे पहले डगमगाता है। लेकिन मयंक चौधरी की लड़ाई इस धारणा को बदलने वाली मिसाल बन गई है। तीन साल तक हर सरकारी दरवाज़े पर दस्तक देने के बाद, अंततः एक स्थानीय अदालत के आदेश पर थानेदार समेत 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।

2022 की एक रात जिसने सब कुछ बदल दिया

बात है 24 अगस्त 2022 की, जब बिरंचीपर गांव स्थित मयंक चौधरी के घर देर रात पुलिस दल ने धावा बोल दिया। आरोप है कि उस वक्त धनरूआ थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष दीनानाथ सिंह, एएसआई विजय कुमार, एसआई विकास कुमार और करीब 10-15 अन्य पुलिसकर्मियों ने घर में घुसकर मयंक और उनके परिवार के साथ मारपीट की। सबसे चिंताजनक बात यह थी कि मयंक के बुजुर्ग पिता के साथ जातिसूचक गालियाँ देते हुए गंभीर रूप से हिंसा की गई, और घर में रखे ₹60,000 नकद भी गायब हो गए।

शिकायत पर बना दबाव, लेकिन मिला सिर्फ डर

घटना के बाद मयंक ने डीएसपी से मिलकर शिकायत की, लेकिन पुलिस ने उल्टा उन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। आरोप है कि उन्हें जबरन एक झूठे बयान पर हस्ताक्षर करने को कहा गया, जिसमें यह लिखा गया था कि उनके पिता को चोट खुद से लगी है। इस मानसिक और प्रशासनिक उत्पीड़न के बीच, मयंक ने पटना पीएमसीएच में अपने पिता का इलाज कराया, लेकिन न्याय की गुहार बार-बार दीवार बनकर लौटती रही।

संवेदनशील वर्ग के लिए और कठिन हो जाता है न्याय पाना

मयंक चौधरी अनुसूचित जाति से आते हैं, और यही सामाजिक पृष्ठभूमि न्याय की राह में सबसे बड़ा अवरोध बन गई। उन्होंने एसएसपी, डीजीपी, एससी/एसटी थाना और अन्य उच्चाधिकारियों को लिखित शिकायतें भेजीं, लेकिन नतीजा सन्नाटा रहा।

न्यायालय बना आखिरी सहारा, आदेश से टूटी चुप्पी

हिम्मत हारने की बजाय मयंक ने व्यवहार न्यायालय, मसौढ़ी का रुख किया और वहां एक परिवाद पत्र दाखिल किया। न्यायालय ने गंभीरता से संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया, जिसके बाद धनरूआ थानाध्यक्ष शुभेन्द्र कुमार ने पुष्टि की कि मामला दर्ज कर लिया गया है। अब यह मामला अधिकारियों की जवाबदेही और पुलिसिया बर्ताव पर भी गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।

ये सिर्फ मयंक की लड़ाई नहीं, पूरे समाज का सवाल है

इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब पुलिस खुद कानून की मर्यादा लांघने लगे, तो नागरिक की लड़ाई और भी मुश्किल हो जाती है। लेकिन मयंक की दृढ़ता ने दिखा दिया कि संविधान पर भरोसा रखने वाला व्यक्ति, आखिरकार न्याय तक पहुंच सकता है, चाहे रास्ता कितना भी लंबा और संघर्षपूर्ण क्यों न हो।

 

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