नई दिल्ली॥ दु़र्गम स्थान, ठंड और बर्फबारी ने चढ़ाई की मुश्किलें और बढ़ा दी थी। बेतहाशा ठंड में मेजर ने सोचा की यदि उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती लेकिन रात का वक्त था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी।
करीबन 1 घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की शॉप दि़खा़ई दी लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था. भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया खैर ताला तोड़ा गया तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बि़स्कि़ट आदि खाकर खुद को राहत दी थकान से उबरने के बाद सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरों की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी।
उन्होंने अपने पर्स में से 2 हज़ार रुपए निकाले और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए। इससे मेजर की आत्मग्लानि कुछ हद तक कम हो गई और टुकड़ी अपने गंतव्य की और बढ़ चली वहां पहले से तैनात टुकड़ी उनका इंतज़ार कर रही थी इस टुकड़ी ने उनसे अगले तीन महीने के लिए चार्ज लिया व् अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गए हो गए।
मेरे पास दवाओं के रुपए भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी उस रात साहब मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी और साहब … उस रात भगवान मेरी दुकान में खु़द आए। मै सुबह अपनी दु़कान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा की मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया। मै दुकान में घुसा तो देखा 1000 रूपए का एक नोट, चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है।
साहब….. उस दिन एक नोट की कीम़़त मेरे लिए क्या थी शायद मै बयान न कर पाऊं … लेकिन भगवान् है साहब … भगवान् तो है बूढ़ा फिर अपने आप में बड़बड़ाया। भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया। पंद्रह जोड़ी आंखे मेजर की तरफ देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था चुप रहो। मेजर साहब उठे, चाय का बिल अदा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले “हाँ बाबा मै जनता हूँ भगवान् है. और तुम्हारी चाय भी शानदार थी।