Mayawati: कैडर की नाराजगी के साथ ही ये वजहें बसपा को ले डूबेंगी !

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लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी के एक बार फिर टूटने के कगार पर है। इसके पहले भी यह पार्टी कई बार टूट चुकी है। बसपा सुप्रीमों मायावती (Mayawati) के तेवर पहले जैसे सख्त नहीं नजर आ रहे हैं। सालों से जनहित के मुद्दों पर भी पार्टी में हरकत नहीं दिख रही है। इसलिए इसके विखराव की आशंका और प्रबल हो उठी है। सियासत के जानकारों का कहना है कि मायावती की नीतियों के चलते अब कैडर वोट भी बसपा से छिटक चुका है। मुस्लिम और ओबीसी पहले ही बसपा से दूर जा चुके हैं। इसके अलावा पार्टी में लीडरशिप की भी कमी है। पार्टी पूरी तरह से अपने मिशन से भटक चुकी है। इसलिए इसका पराभव तय माना जा रहा है।

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बसपा का गठन करिश्माई नेता कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 में किया था। इस पार्टी का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश में ही रहा है। बसपा इस प्रदेश में चार बार सरकार भी बना चुकी है। कांशीराम ने पार्टी में मायावती (Mayawati) को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। आज भी मायावती ही बसपा की अध्यक्ष हैं। उन्हीं के नेतृत्व में बसपा ने बहुजन से सर्वजन तक की यात्रा की। सवर्णों खासकर ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ा गया। वर्ष 2007 में यूपी में मायावती के नेतृत्व में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। इस दौरान पार्टी में सतीश चंद्र मिश्रा का कद भी जरूरत से ज्यादा ही बढ़ा। इसके साथ ही पार्टी में बाहुबलियों को भी शामिल किया जाने लगा और कैडर की उपेक्षा शुरू हो गई।

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यूपी में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद से ही पार्टी सुप्रीमों मायावती (Mayawati) की नीतियों में बदलाव आया। वह कैडर की अनदेखी करने लगी। इसी दौरान मायावती ने अपने कार्यकाल में सफाईकर्मियों की भर्ती की थी। कहा जाता है कि उसमें सबसे ज्यादा ब्राह्मण और ठाकुरों की भर्ती हुई। पार्टी के पुराने नेताओं की उपेक्षा और सतीश चंद्र मिश्रा को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी। वही पार्टी के मुख्य रणनीतिकार हो गए।

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एक बसपा नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा कि उस दौरान कुछ लोगों ने सतीश मिश्रा के चलते कैडर के नाराज होने की बात पार्टी नेतृत्व को बताई, लेकिन उन नेताओं की नहीं सुनी गई। बसपा नेता ने कहा कि यदि मायावती (Mayawati) ने सतीश चंद्र मिश्रा को पार्टी से बाहर या महत्वहीन कर दिया होता तो पार्टी कैडर नाराज न होता। इसी तरह बाबा साहेब के सिद्धांतों और कांशीराम के मिशन से भी पार्टी भटक गई। यहीं से पार्टी के पतन की शरुआत हुई।

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इसके अलावा मायावती (Mayawati) ने एक-एक कर जनाधार वाले तेज-तर्रार नेताओं को बसपा से बाहर कर दिया। बहुजन आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निहाने वाले तमाम नेता उनके सख्त व्यवहार से रास्ता बदल लिया। इसमें राज बहादुर, आरके चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य, नासीमुद्दीन सिद्दीकी, लाल बहादुर और बाबू सिंह कुशवाहा आदि नेता शामिल हैं। पार्टी छोड़कर जाने वाले हर नेता ने मायावती पर वसूली का आरोप लगाया। चंदे के रूप में बड़ी धनराशि लेकर पार्टी का टिकट देने की चर्चा भी आम हो गई।

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ऐसे में पार्टी कैडर को लगने लगा है कि मायावती (Mayawati) उन्हें इस्तेमाल कर रही हैं। चुनावों में पार्टी कैडर को उम्मीदवार बनाने की जगह टिकट बेचे जा रहे हैं। ये बातें बसपा कैडर के मन में घर कर गई। इसी दौरान भाजपा ने बसपा के आधार वोट बैंक में सेंधमारी कर ली। आज तमाम दलित जातियां भाजपा के सर्थन में खड़ी नजर आ रही हैं। इसके अलावा बसपा में मायावती ने कभी दूसरी लीडरशिप को उभरने का मौका नहीं दिया। इसका खामियाजा अब पार्टी को उठाना ही पड़ेगा।

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इन सब वजहों से बसपा से कैडर वोट भी छिटकने लगा। उसे लगने लगा कि बसपा अब दलितों की नहीं, बल्कि ब्राह्मणों की पार्टी हो गई है और मिशन से भटक गई है। पश्चिमी यूपी में भीम सेना के उभार ने बची-खुची कसर भी पूरी कर दी। पश्चिमी यूपी का दलित तबका भीम सेना चीफ चंद्रशेखर के नेतृत्व में अपना भविष्य तलाशता नजर आ रहा है। ओबीसी तबका पहले ही बसपा से दूर जा चूका है। अब बसपा के पास ज्यादा कुछ बचा नहीं है। वह तेजी से अवसान की ओर बढ़ रही है। (Mayawati)

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