गांवों मे गहमागहमी हैं। अजीब सी रंगत है। बिछड़ों के मिलने के दिन हैं। अपनी माटी और अपनों का मिलन होना है। समस्त परिवार एकत्रित हो रहे हैं। मजदूर भाई पहले ही अपने घर पंहुच चुके हैं। अब उनके फौजी भाई भी पंहुच जायेंगे। निश्चित तौर से सन्नाटे भरी इन हलचलों में दर्दनाक चीखें कोहराम मचाने वाली ह़ै।
टीवी पर देखियेगा भारतीय सैनिक अपने-अपने गांव आयेंगे। वो लाये जायेंगे। कुछ दिन पहले इनके भाई-बंधु गांव आ चुके थे। ये लाये नहीं गये थे, खुद पैदल आये थे। अब इनके भाई बंधु फौजी पूरी शानो शौकत के साथ गांव लाये जायेंगे। आज कलेजा थाम कर बैठने का दिन है।चीन बार्डर पर शहीद हुए हमारे फौजियों के पार्थव शरीर उनके घर आने हैं।
हमने एयरकंडीशन कमरों में टीवी पर मजदूरों को पैदल गांव जाते देखा था, अब मजदूरों के फौजी भाइयों के जनाजे गांव जाते देखेंगे।यूपी-बिहार जैसे तमाम प्रदेशों के गांवों में एक हलचल होगी। भारत की आत्मा गांवों में पहले से ही गहमागहमी है।अब समस्त परिवार एकत्रित होगा।
कोरोना त्रासदी के बीच दिल्ली में भाजपा और आप में सियासी संघर्ष
हम शहरी अक्सर हकीकत के भारत से अंजान रहते हैं। न्यूज चैनलों और फेसबुक की जंगों में शरीक होते है। जमीनी हक़ीक़त से जुड़े भारत के असली रणबांकुरों के संघर्षों का हमें एहसास तक नहीं। टीवी वाले गांव जाते नहीं और हम शहरी सोशल मीडिया की आभासी दुनियां में खोये रहते हैं। गांव में ही असली भारत बसता है और यहीं उजड़ता भी है। गांव के टूटे-फूटे घरों में रहने वाला एक भाई देश के कारखानों, कंपनियों-फैक्ट्रियों में पसीना बहाकर देश की अर्थ व्यवस्था बेहतर बनाता है।बड़े-बड़े शहर बनाता है। और जब किसी महामारी की मजबूरी में फैक्ट्रियां और निर्माण कार्य बंद हो जाती हैं तो वही शहर उसे रोटी नहीं देता जिस शहर को उसने बनाया होता है। लेहाज़ा वो पैदल अपने गांव की तरफ भागता है। इस मजदूर का दूसरा भाई सरहदों पर देश की हिफाजत करता है। देश के लिए लड़ते-लड़ते ये जब शहीद हो जाता है तो फिर उसका जनाजा पूरी शान के साथ गांव लाया जाता है।
कोरोना काल : देश की नीतियों का विद्रूप है भुखमरी
इन दिनों गांवों में गहमागहमी बढ़ती जा रही हैं। लाखों मजदूर अपने-अपने घर पैदल आये थे। अब इनके फौजी भाइयों की लाशें राजकीय सम्मान के साथ लायी जायेगी। देश के इन रणबांकुरों की भावनाओं को एक फिल्म के गीत ने बखूबी अभिव्यक्त किया था। चार दिन की जिन्दगी में अपनी माटी और अपनों से बिछड़ने का कितना मलाल होता है इनको। अपनों से ये वादा करते हैं कि मैं एक दिन आऊंगा। मैं वापस आऊंगा। घर अपने गांव में। उसी की छांव में।
लो, ऐसे वादे निभाने के दिन आने लगे। कोई अपने गांव जिन्दा आ रहा है.तो कोई मुर्दा।
फिल्म बॉर्डर का ये गीत यथार्थ बनकर हमें तड़पा रहा है-
खोदा कोरोना योद्धा निकले पत्रकार
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
वो पूछे जाती है
के घर कब आओगे
के घर कब आओगे
लिखो कब आओगे
के तुम बिन ये घर सूना सूना है
मैं वापस आऊंगा
मैं वापस आऊंगा
घर अपने गाँव में
उसी की छांव में
कि माँ के आँचल से
गाँव की पीपल से
किसी के काजल से
किया जो वादा था वो निभाऊंगा
मैं एक दिन आऊंगा…
कोरोना काल में देश के 67 फीसदी श्रमिकों ने खोया रोजगार
पैदल मजदूरों के हालात देखने के बाद आंखों में कुछ आंसू बचे हों तो आज खूब रोइयेगा। गांव आते मजदूरों के फौजी भाइयों के जनाजे टीवी चैनलों पर ज़रूर दिखाये जायेंगे।
एयरकंडीशनर कमरों में सख्त मौसमों का अहसास करना मत भूलियेगा। चीन के क्रूर सैनिकों ने जहां हमारे सैनिकों को शहीद किया था वहां का टम्प्रेचर जीरो डिग्री था और इन सैनिकों के भाई-बंधुओं ने गांव वापसी के लिए जब एक-एक हजार किलोमीटर का पैदल रास्ता तय किया था तब उन्हें चालीस डिग्री तापमान की तकलीफें बर्दास्त की थीं।
– नवेद शिकोह
8090180256
--Advertisement--