महाशिवरात्रि की पौराणिक कथाएं

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DESK। महाशिवरात्रि के विषय में लोक में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें समुद्र मंथन की कथा और शिकारी व हिरण की कथा अधिक सुनी और सुनाई जाती है। इस कथाओं को सुनने व सुनाने से भी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

समुद्र मंथन की कथा

समुद्र मंथन की कथा से सभी परिचित हैं। समुद्र मंथन में अमृत के साथ ही हलाहल नामक विष निकला था। इस विष में संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी। केवल भगवान शिव हलाहल विष को नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने ब्रह्मांड को नष्ट होने से बचाने के लिए हलाहल विष को अपने कंठ में रख लिया था। हलाहल के प्रभाव से भगवान शिव का गला नीला हो गया था, इसीलिए भगवान शिव ‘नीलकंठ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।

विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए चिकित्सकों ने भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। शिव को जागने के लिए देवताओं ने विभिन्न प्रकार के नृत्य और संगीत का सहारा लिया। इस तरह शिव रातभर नृत्य और संगीत का आनंद लेते रहे। भोर होने पर देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सभी को आशीर्वाद दिया। चूंकि उस दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी, जब शिव ने ब्रम्हांड को बचाया था। इसीलिएउसी समय से शिवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा।

शिव और पार्वती का विवाह

एक अन्य कथा के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव और आदि शक्ति पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। उसी समय से इस दिन शिवरात्रि पर्व मनाने की प्रथा शुरू हुई। पुराणों के अनुसार भगवान शिव का तांडव और भगवती का लास्यनृत्य के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन है, अन्यथा सृष्टि खंड-खंड हो जाए।

शिकारी व हिरण की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक शिकारी था जो कि अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए आखेट करता था। एक बार संयोग वश महाशिव रात्रि के दिन वह भूखा-प्यासा रहकर शिकार के आने की राह देखता रहा है। सायंकाल सरोवर के पास स्थित एक बेल के पेड़ में चढ़ कर वह इधर-उधर अपने शिकार को ताकता रहा। इस दौरान शिकारी अनजाने में प्रत्येक प्रहर में बेल की पत्तियां तोड़कर गिराता रहा। संयोग से बेल की पत्तियां शिव लिंग पर चढ़ती।

शिकारी को इस दौरान एक-एक करके तीन हिरणी व एक हिरण आता हुआ दिखा, किन्तु जैसे ही उस शिकारी ने अपने धनुष पर वाण चढ़ाकर उसे मारना चाहा तो, पास आये हिरणी व हिरण ने अपनी व्यथा बताते हुए उस समय जाने व पुनः लौटकर आने के वादे कर चले गए। वह हिरण परिवार अपने वादे के अनुसार प्रातः काल होते ही पुनः शिकारी के सामने आ खड़ा हुआ। अब शिकारी उन पशुओं के सत्य वचन से आश्चर्य चकित रह गया। दरअसल शिकारी द्वारा अनजाने में महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा होती रही है, जिससे उसकी बुद्धि निर्मल हो गयी है।

इस दृश्य को देखकर देवताओं ने प्रसन्न होकर शिकारी के ऊपर पुष्पवर्षा की। इस तरह शिकारी धनादि से सम्पन्न हो गया और मृग परिवार को जीवन दान मिला। भगवान शिव ने मृग और शिकारी पर प्रसन्न होकर उन्हें मोक्ष का वरदान दिया। इस कथा का आशय यह है कि शिवलिंग के निकट अनजाने में भी जाने पर मन और चित्त निर्मल हो जाता है।

ईशान संहिता की कथा

ईशान संहिता की एक कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया। इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया। अपना माहात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों देवता उतावले हो उठे। इस पर भग्वान शिव ने हस्तक्षेप किया और एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आ गए और उनका क्रोध भी शांत हो चुका गया। उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया और उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया। इसके बाद भग्वान शिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाने लगा।

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