लखनऊ। इधर यूपी में चुनाव आचार संहिता लागू हो गयी। उधर यूपी वन निगम में अफसर का तबादला कर दिया गया। निगम के प्रबंध निदेशक संजय सिंह को यह काम वाजिब लगा। उन्हें तबादला आदेश जारी करने में कोई परहेज नहीं किया। सूत्रों की मानें तो पंचम तल के एक बड़े अफसर के भाई का वन विभाग में काफी दखल है। उनके दबाव में एमडी ने आचार संहिता लागू होने के बावजूद यह कदम उठाया। वन निगम के असफरों का यह कारनामा सीएम योगी ( CM Yogi) के जीरो टालरेंस के दावों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहा है।
जिस अधिकारी का तबादला किया गया है। वह खुद पिछले दो दशक से विवादों से घिरे रहे हैं। नये तबादला आदेश में दविंदर सिंह को मुख्यालय में महाप्रबंधक विपणन के अधीन प्रभागीय विक्रय प्रबंधक के पद पर तैनात किया गया। विभाग में यह भी चर्चा है कि उन्हें मुख्यालय में तैनाती देकर आरएम के पद की जिम्मेदारी भी दी जानी थी। पर यूपी किरण ने जब पूरे प्रकरण की पोल खोल कर रख दी तो अब अफसरों के मंसूबों पर पानी फिर गया है।( CM Yogi)
आपको बता दें कि प्रबंध निदेशक संजय सिंह पर पहले से भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि दविंदर सिंह का ट्रांसफर 12 जनवरी 2022 की शाम को किया गया लेकिन डिस्पैच 4 जनवरी 2022 दर्ज किया गया है लेकिन प्रबंध निदेशक संजय सिंह का यह कृत्य विभाग द्वारा भेजे गए मेल की तारीख से साबित हो जायेगा। यदि इसकी निष्पक्ष जाँच कराई जाये तो ये स्वतः स्पष्ट भी हो जायेगा। ( CM Yogi)
मजे की बात यह है कि यह वही दविन्दर सिंह हैं जो विभाग में देवेंदर सिंह (Devendra Singh) के नाम से नियुक्ति पाए थे। पर कागजातों की हेराफेरी ने चमत्कारी ढंग से उनकी सिर्फ पहचान ही नहीं बल्कि जन्मतिथि भी बदली। उनका सर्विस पीरिएड एकाएक दस साल बढ गया और वह सीएम योगी के गृह जनपद में कार्यभार के साथ मुख्यालय में भी पद से नवाजे गए। ( CM Yogi)
विभागीय जानकारों का कहना है कि पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान ने जाते जाते दविंदर सिंह पर अपनी मेहरबानी दिखायी। हालांकि प्रबंध निदेशक इसके लिए राजी नहीं थे। बावजूद इसके आला अफसरों के दबाव में वह झुक गए। हैरान करने वाली बात ये है कि दविंदर सिंह की तैनाती मुख्यालय में जिस पोस्ट पर की गयी है वो पोस्ट है ही नहीं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)
बहरहाल बतौर जांच अधिकारी, मामले की पड़ताल कर रहे महाप्रबंधक एसके शर्मा अपनी जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके तो प्रकरण की दोबारा जांच करायी गयी। जांच रिपोर्ट फिर शासन को प्रेषित की गयी। पर वह भी फाइलों में ही दबकर रह गई। कार्रवाई शून्य है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दविंदर सिंह (Davinder Singh) की तरफ से अपने नाम और जन्मतिथि परिवर्तन के लिए कोई प्रत्यावेदन नहीं दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि परिवर्तन के लिए प्रत्यावेदन नहीं दिया गया तो फिर यह परिवर्तन कैसे हुआ? क्या विभाग इसकी जांच कराएगा? फिलहाल इस सवाल पर अधिकारी खामोश हैं।
--Advertisement--