US-ईरान विवाद के रहस्मई जाल में उलझा पाकिस्तान, इमरान खान की विदेशी नीति पर फौज का साया

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न्यूयॉर्क॥ ईरान-US (अमरीका) विवाद जिस तरह तूल पकड़ रहा है पाकिस्तानी विदेश नीति की चुनौती भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में एक सवाल यह पैदा हो रहा है कि यदि इस तनाव ने जंग का रूप अखितयार किया तो क्‍या Pakistan (पाकिस्तान) अपनी तटस्‍थता की नीति का पालन कर पाएगा।

इस पूरी घटनाक्रम पर  अब तक PAK ने दोनों देशों के बीच सुलह कराने में ही अधिक बल दिया है। Pakistan (पाकिस्तान) की विदेश नीति के इतिहास पर एक नजर डालें तो साफ हो जाएगा कि उसकी तटस्‍थता नीति बहुत कारगर हो नहीं सकी है। आइए जानते हैं उन वजहों को जिसके कारण Pakistan (पाकिस्तान) का झुकाव US (अमरीका) की तरफ होता है। इसके साथ उन कारणों को भी बताएंगे, जिसके कारण Pakistan (पाकिस्तान) की विदेश नीति US (अमरीका) की ओर झुकी हुई है।

यदि पाकस्तिान की विदेश नीति पर नजर दौड़ाए तो यह साफ हो जाएगा कि अमेरिकी विवादों में हर बार Pakistan (पाकिस्तान) ने प्रारंभ में तो तटस्‍थता की नीति अपनाई है, लेकिन बाद में वह US (अमरीका) के आगे झु़क गया है। इस बार यही हुआ अमेरिकी दबाव, Pakistan (पाकिस्तान) की ताजा आर्थिक हालात और भारत के साथ Pakistan (पाकिस्तान) के तल्‍ख होते रिश्‍तों के कारण इस्‍लामाबाद का वाशिंगटन का सहयोगी बनने में अपनी भ़लाई समझा। US (अमरीका) का निरंतर भारत के प्रति झुकाव ने Pakistan (पाकिस्तान) की चिंताएं बढ़ाई है।

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जम्‍मू कश्‍मीर में धारा 370 का मामला हो या पुलवामा टेररिस्ट अटैक के पश्चात हिंदुस्तान-Pakistan (पाकिस्तान) के बीच उपजे तनाव का मसला हो US (अमरीका) का झुकाव भारत की ओर रहा है। ऐसे में Pakistan (पाकिस्तान) ऐसे मौके की तलाश में है, जिससे वह US (अमरीका) के निकट आ सके। इसलिए Pakistan (पाकिस्तान) की तटस्‍थ नीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

मौजूदा हालात में Pakistan (पाकिस्तान) तटस्थ रह सकता है और तनाव को कम करवाने में किरदार भी अदा कर सकता है लेकिन जैसे-जैसे अमरीका ईरान तनाव में इज़ाफ़ा होगा और ये जंग का रूप लेगा Pakistan (पाकिस्तान) के लिए तटस्थ रहना मुश्किल हो जाएगा।

किसी भी अमेरिकी संकट में Pakistan (पाकिस्तान) ने US (अमरीका) का साथ दिया है। ऐसे में यह सवाल पैदा हो रहा है कि क्‍या इस बार भी ईरान-US (अमरीका) संघर्ष में Pakistan (पाकिस्तान) इस बार भी US (अमरीका) का साथ देगा। यह सवाल इ‍सलिए भी पैदा हो रहा है क्‍यों कि अफगानिस्‍तान में अमेरिकी जंग में तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अमेरिकी की सहायता की थी।

उस वक्त पाकिस्तानी पीएम खान ने मुशर्रफ के फैसले का विरोध किया था। आज जब ईरान और US (अमरीका) संघर्ष में इमरान खान खुद प्रधानमंत्री हैं तो क्‍या वह US (अमरीका) का साथ नहीं देंगे। हालांकि, यदि Pakistan (पाकिस्तान) के इतिहास पर नजर डाले तो साफ हो जाता है तो इसका फैसला प्रधानमंत्री से ज्‍यादा Pakistan (पाकिस्तान) फौज करती है।

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आज Pakistan (पाकिस्तान) की तटस्‍थता की नीति उसके आर्थिक नीति पर निर्भर करती है। इसका ताजा उदाहरण कुआलालंपुर बैठक है। सऊदी अरब के विरोध के बाद Pakistan (पाकिस्तान) इस बैठक से पीछे हट गया था। Pakistan (पाकिस्तान) ने यमन जंग में तटस्‍थ रहने का फैसला लिया था। उस समय वह अपनी नीति में सफल हो गया था। क्‍यों कि उस वक्‍त उसकी आर्थिक स्थिति बेहतर थी।

आज Pakistan (पाकिस्तान) के हालात ठीक नहीं है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यदि US (अमरीका) और ईरान में किसी एक की चुनने का फैसला लेना पड़े तो इस्‍लामाबाद जाहिर तौर पर US (अमरीका) का साथ देगा। भले ही पाकस्तिान और ईरान के बीच संबंध शांतिप्रिय रहे हों। इसके अलावा ईरान के साथ विवाद में अमरीका, Pakistan (पाकिस्तान) पर उतना दबाव नहीं डालेगा क्योंकि अमरीका के पास सऊदी अरब, इसराइल और खाड़ी देशों जैसे और बहुत सहयोगी हैं।

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