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Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने बड़े शोर-शराबे के साथ दावा किया कि उसने ईरान के गुप्त न्यूक्लियर बंकरों को तहस-नहस कर दिया है। बात हो रही है उस 13,000 किलो वजनी बम की, जिसे दुनिया का सबसे ताकतवर बंकर-बस्टर कहा जाता है। इस बम को इतना भारी माना जाता है कि इसे ‘माउंट एवरेस्ट’ के वजन के बराबर बताया जाता है। अमेरिका का कहना है कि इस बम ने ईरान के फोर्दो और नतांज न्यूक्लियर केंद्रों को ध्वस्त कर दिया। लेकिन क्या वाकई हकीकत भी वैसी ही है?

अमेरिका ने बड़े पैमाने पर हमला किया, जिसमें 14 GBU-57 नामक शक्तिशाली बम और 30 टॉमहॉक मिसाइलें शामिल थीं। व्हाइट हाउस ने इसे ‘क्लीन हिट’ बताया, यानी पूरी तरह से निशाने पर सटीक वार। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि नुकसान जितना बताया जा रहा है, उतना नहीं हुआ। कुछ सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि बंकरों को पूरी तरह तबाह नहीं किया जा सका और नुकसान सीमित ही रहा होगा।

बम खत्म, नई चुनौती सामने

अमेरिका के पास कुल 20 ऐसे बम थे, जिनमें से 14 ईरान पर गिरा दिए गए। अब केवल 6 बम बचे हैं। ऐसे में अगर भविष्य में फिर से इस तरह का हमला करना पड़ा तो क्या अमेरिका जल्द ही ऐसे बम तैयार कर सकेगा? यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

अमेरिकी वायुसेना के अंदर ही अब यह चर्चा चल रही है कि GBU-57 बम को जल्द से जल्द सेवानिवृत्त कर देना चाहिए। इसकी जगह अगली पीढ़ी का एक नया बम लाया जाएगा, जिसका वजन करीब 10,000 किलो होगा, यानी पहले से हल्का। साथ ही इसमें रॉकेट बूस्ट लगेगा जिससे यह दूरी से ही लक्षित क्षेत्र पर हमला कर सकेगा, जिससे पायलट की सुरक्षा भी बनी रहेगी। इस नई तकनीक को ‘स्टैंड-ऑफ’ capability कहते हैं।

क्या था असली मकसद?

यह सवाल भी उठता है कि यदि GBU-57 इतना प्रभावशाली था, तो उसे क्यों बदला जा रहा है? कुछ जानकार मानते हैं कि अमेरिकी प्रशासन का यह बड़ा दावा सिर्फ राजनीतिक और प्रचार का हिस्सा था। असल में, ईरान के बंकरों को पूरी तरह तबाह नहीं किया जा सका। और अब यह माना जा रहा है कि पुराने बमों में कई खामियां थीं, साथ ही इन हमलों में पायलटों के लिए खतरा भी बहुत था।

अब अमेरिका नई रणनीति और आधुनिक हथियारों पर काम कर रहा है ताकि भविष्य में इस तरह की कार्रवाईयों को और प्रभावी और सुरक्षित बनाया जा सके।

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