
नई दिल्ली॥ कोविड-19 संकट से लड़ाई जारी है। कब तक चलेगी पता नहीं। इतना जरूर पता है कि इससे होने वाले नुकसान का सबसे अधिक प्रभाव गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है। लॉकडाउन की वजह से मजदूरी अब मजबूरी में बदल चुकी है। मजदूरी मिल नहीं रही। कितने दिन तक बचे हुए रुपयों से खाना लाते, तो ये मजदूर चल दिए अपने घर। ऐसे में स्थिति और बदत्तर हो जाती है, जब मजदूर के परिवार में कोई दिव्यांग हो। साइकिल के बीच में लटके उस सफेद बोरे में मजदूर की दिव्यांग बेटी है।
ये प्रवासी मजदूर अपने घरवालों के साथ राजधानी दिल्ली से उ0प्र0 के लिए जा रहा है। इसके साथ इसके बच्चे भी है। एक बेटी है इस मजदूर की जो दिव्यांग है। उसे इस मजदूर ने साइकिल पर एक देसी जुगाड़ के सहारे लटका रखा है। सफेद प्लास्टिक के बोरे से झांकतीं वो मासूम आंखें कोरोना के खौफ, भूख, तपती गर्मी, दर्द और मजबूरियों की गवाही दे रही हैं। न जाने कितनी दूर इस तरह से उस बच्ची को ऐसे ही लटके हुए जाना है। न जाने रास्ते में कितनी गर्मी होगी।
इस मासूम को जरा सी भी अंदाजा नहीं हैं कि संसार आखिर किस संकट से गुजर रहा है। खैर, वो मासूम अपने परिवार के साथ अपने घर की ओर निकल पड़ी है वो भी बोरी में बैठकर।