Desk। सनातन धर्म और उसके पर्वों का ठोस वैज्ञानिक आधार है। वैज्ञानिक दृष्टि से महाशिवरात्रि पर्व भी अतिमहत्व का है। महाशिवरात्रि की रात्रि विशेष होती है। दरअसल इस रात्रि पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध इस तरह अवस्थित होता है कि मनुष्य के अंदर की ऊर्जा प्राकृतिक तौर पर ऊपर की तरफ जाने लगती है। अर्थात प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने का मार्ग सुगम करती है। महाशिवरात्रि की रात्रि में जागरण करने एवं रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात बताई गई है।
महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव की पूजा की जाती है। भगवान शिव को सबसे बड़ा वैज्ञानिक कहा गया है। समस्त प्रकार के तंत्र, मंत्र, यंत्र, ज्योतिष, ग्रह, नक्षत्र आदि के जनक भगवान शिव ही हैं। इसलिए शिव के पास हर समस्या का समाधान हैं। इसी तरह प्रत्येक मंदिर में शिवलिंग स्थापित होता है। शिवलिंग ऊर्जा का एक पिंड है, जो गोल, लम्बा व वृत्ताकार होता है। शिवलिंग ब्रह्माण्डीय शक्ति को सोखता है।
रुद्राभिषेक, जलाभिषेक, भस्म आरती, भांग -धतूरा और बेल पत्र आदि चढ़ाकर भक्त उस ऊर्जा को अपने में ग्रहण करता है। इससे मन व विचारों में शुद्धता तथा शारीरिक व्याधियों का निवारण स्वाभाविक है।
शिवरात्रि के पश्चात सूर्य उत्तरायण में अग्रसर होता है और ग्रीष्मऋतु का आगमन भी प्रारंभ हो जाता है। मनुष्य गर्मी के प्रभाव से बचने के लिए अपनी चेतना को शिव को समर्पित कर देता है। इससे मनुष्य तमाम तरह की व्याधियों से मुक्त हो जाता है। वैसे भी विज्ञान ध्यान ऊर्जा को विशेष महत्व देता है।
महाशिवरात्रि पर्व पर व्रत की परंपरा है। व्रत रखने से तन के शुद्धीकरण के साथ ही रक्त भी शुद्ध होता है। आतों की सफाई होती है और पेट को आराम मिलता है। इससे उत्सर्जन तंत्र और पाचन तंत्र, दोनों ही अपनी अशुद्धियों से छुटकारा पाते हैं। कई रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वसन तंत्र ठीक होता है। व्रत रखने से कलोस्ट्रोल का स्तर भी घटता है। इसी तरह व्रत से स्मरण शक्ति बढ़ती है। वैज्ञानिकों के अनुसार व्रत वाले दिन स्मरण शक्ति तीन से 14 फीसदी तक बढ़ जाती है। इससे मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।