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नैनीताल। अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर नैनीताल की चारों दिशाओं में सक्रिय भूस्खलन उत्तराखंड के इस पर्यटक स्थल के अस्तित्व पर संकट खड़ा करता दिख रहा है, साथ ही यहां आने वाले पर्यटक भी अब डर के साए में घूमने को मजबूर हैं. भूस्खलन की घटना से अब पर्यटन कारोबार पर भी असर पड़ने लगा है. तेजी से बढ़ती आबादी और अंधाधुंध भवन निर्माण का सरोवरनगरी पर बुरा असर पड़ा है. 

जाने-माने पर्यावरणविद् (Scientists Report On Nainital) अजय रावत का कहना है की जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में नैनीताल शहर की भार सहने की क्षमता खत्म हो चुकी है. जिसके चलते लगातार नैनीताल में भूस्खलन हो रहे हैं. बता दें की बीते कुछ समय से नैनीताल के बलिया नाला, नैनी झील, माल रोड, राजभवन रोड, ठंडी सड़क समेत आसपास के क्षेत्रों में लगातार भूस्खलन हो रहा है. अगर इसी तरह भूस्खलन होते रहे और सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो जल्द ही नैनीताल के अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है. लिहाजा नैनीताल में हो रहे निर्माण कार्यों पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए. जिससे नैनीताल को बचाया जा सके.

पर्यावरणविद् (Scientists Report On Nainital) अजय रावत का कहना है कि नैनीताल राजभवन रोड,बिरला रोड बेहद संवेदनशील है और इन पहाड़ियों की स्थिति ब्रिटिश शासकों को पहले से पता थी. इसलिए सड़क की संवेदनशीलता को देखते हुये अंग्रेजों ने आज से 172 साल पहले ही उस पर गाड़ियाँ चलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था, और पहाड़ी पर बनी सड़क पर केवल पैदल चलने की अनुमति व घुड़सवारों को चलने की अनुमति दी थी. जिस वजह से नैनीताल की सभी पहाड़ियां लंबे समय तक सुरक्षित रही. 

आजादी के बाद नैनीताल का स्वरूप बिगड़ता ही चला गया. 80 के दशक में पर्यटन व्यवसाय बढ़ने से यहां निर्माण कार्यों की बाढ़ सी आ गई. और बदलते समय के साथ-साथ इस सड़क पर बड़े बड़े वाहन चलने लगे और पर्यटन सीजन के दौरान हर रोज लगभग 5,000 गाड़ियाँ चलती हैं. सप्ताहान्त में तो गाड़ियों की यह संख्या बढ़कर लगभग 9,000 हजार तक पहुँच जाती है जिसके चलते आज पहाड़ी पर जगह जगह भूस्खलन की समस्या देखने को मिल रही है.

आपको बता दें कि 1841 में पी बैरन ने नैनीताल की खोज की थी. वर्ष 1880 तक यह शहर काफी विकसित हो चुका था. तल्लीताल तथा मल्लीताल क्षेत्र में काफी आबादी बस चुकी थी. वर्ष 1880 में 16 सितंबर से शुरू हुई मूसलाधार बारिश नैनीताल में 18 सितंबर की सुबह कहर ढहाने के बाद ही थमी. सुबह करीब 10 बजे शेर का डांडा क्षेत्र में पहाड़ भंयकर गर्जना के साथ गिरा तो नैनीताल का नक्शा ही बदल गया. 

पहाड़ ने नीचे स्थित होटल विक्टोरिया, मि.बेल की बिसातखाने की दुकान तथा तत्कालीन नंदा देवी मंदिर जमींदोज हो गए. इस हादसे में मौजूद सभी 151 लोग इस हादसे में मारे गए स घटना से सबक लेते हुए अंग्रेजों ने नैनीताल की पहाड़ियों की रक्षा को यहां 62 नालों का निर्माण किया गया. (Scientists Report On Nainital)

बरसात के दौरान पहाड़ी से पानी इन्हीं नालों द्वारा नैनी झील तक जाता है. इनकी लंबाई करीब 79 किलोमीटर है. इन्हीं नालों के निर्माण की वजह से आज नैनीताल का अस्तित्व कायम है. अजय रावत बताते हैं बीते 20 सालों में नैनीताल समेत आसपास के क्षेत्रों में नालों के आस पास व उसके ऊपर अवैध निर्माण की बाढ़ आ चुकी है. इस वजह से आज नैनीताल की पहाड़ियों में अत्यधिक दबाव पड़ने लगा है. वर्तमान में प्रशासन के उपेक्षापूर्ण रवैये से कंक्रीट के जंगल मेें बदलती यहां की पहाड़ियां फिर से किसी बड़े हादसे को आमंत्रण दे रही हैं. (Scientists Report On Nainital)

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