Up Kiran, Digital Desk: जब भी चुनावों के नतीजे आते हैं, तो सत्ता पक्ष जश्न मनाता है और विपक्ष हार की वजहें ढूंढने में जुट जाता है. लेकिन कई बार हार-जीत से इतर भी ऐसे बयान सामने आते हैं, जो चुनाव प्रक्रिया और संस्थाओं पर सवाल खड़े कर देते हैं. हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Poll Outcome) में आए नतीजों पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) ने केंद्रीय चुनाव आयोग (Chief Election Commissioner - CEC) को सीधे निशाने पर लिया है. उनके बयान ने न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है, बल्कि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर एक गंभीर बहस भी छेड़ दी है.
क्यों लगाया बघेल ने CEC पर 'तंज'?
छत्तीसगढ़ के एक कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री होने के नाते भूपेश बघेल की टिप्पणी को हल्के में नहीं लिया जा सकता. बिहार चुनाव परिणाम, जहां NDA गठबंधन ने जबरदस्त जीत हासिल की है, को लेकर उन्होंने CEC पर निशाना साधते हुए कहा है कि इन परिणामों को 'संदिग्ध' बनाया गया है या उनके पीछे कोई गड़बड़ हुई है. आमतौर पर, विपक्षी नेता हार के बाद चुनाव आयोग पर उंगलियां उठाते रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए ऐसा बयान देना राजनीतिक हलकों में गंभीरता से लिया जाता है.
- विपक्ष की चिंताएं: बघेल का यह बयान देश में विपक्ष की बढ़ती हुई चिंता को दर्शाता है कि क्या चुनाव आयोग वाकई स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम कर रहा है. खासकर जब नतीजे एकतरफा हों या उम्मीदों के खिलाफ आएं, तो ऐसी बातें अक्सर सामने आती हैं.
- इलेक्शन मैनेजमेंट पर सवाल: उन्होंने शायद चुनावी प्रक्रिया के मैनेजमेंट (election management), मतगणना (counting process) या वोटों के हिसाब-किताब को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि चुनाव आयोग इन सवालों का स्पष्ट जवाब दे, ताकि जनता का भरोसा कायम रह सके.
- बढ़ती कड़वाहट: यह टिप्पणी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ती राजनीतिक कड़वाहट और चुनाव परिणामों पर लगातार उठते सवालों को भी दर्शाती है.
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसका काम चुनावों को निष्पक्ष तरीके से कराना है. ऐसे में अगर उस पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो यह उसके भरोसे पर असर डाल सकता है. भूपेश बघेल के बयान ने बिहार चुनाव परिणाम को एक नई दिशा दे दी है, और अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या आगे कोई स्पष्टीकरण देता है. यह बहस लोकतंत्र के लिए स्वस्थ है, क्योंकि अंततः जनता को ही विश्वास होना चाहिए कि उसके द्वारा दिया गया वोट और चुनावी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष है.

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