भारत के मुख्य पर्व के तौर पर मनाए जाने वाले लोहड़ी (Lohri) की जड़ें शिव और सती की कथा से जुड़ी हुई हैं। हालांकि, इस पर्व को मनाने के पीछे कई रोमांचक कथाएं प्रचलित हैं। जनश्रुतियों के अनुसार इस दिन दुष्ट और पापियों का नाश कर लोगों को सुरक्षित किया गया था। इस पर्व के दिन सबसे ज्यादा रौनक पंजाब में रहती है। यह पारिवारिक एकता का संदेश भी देने के लिए मनाया जाता है। इस दौरान जांबाज शख्स दुल्ला भट्टी की कहानी भी सुनाई जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी (Lohri) पर्व भगवान शिव और माता सती के जीवन से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि पहली बार इस पर्व को सती के अग्निकुंड में जलने की स्मृति में प्रारंभ किया गया था। कथा के अनुसार पार्वती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और अपने दामाद शिव को आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज होकर देवी सती अपने पिता के घर पहुंच गईं। वहां पति शिव के बारे में कटु वचन और अपमान सुन सती यज्ञ कुंड में समा गईं।
सती के अग्निकुंड में समाधि लेने की सूचना पाकर भयंकर क्रोध में आए भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न किया और प्रजापति दक्ष का सिर कटवा दिया। कहा जाता है कि यज्ञ को शिव की अनुमति से बाद में पूरा कराया गया। यज्ञ कुंड में दोबारा लकड़ी और अन्य सामग्री डाली गई और यहीं से लोहड़ी (Lohri) पर्व की शुरुआत मानी जाती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार देवी सती की याद में वह दोबारा यज्ञ कुंड जलाया गया, जिससे लोहड़ी पर्व की शुरुआत हुई।
लोहड़ी (Lohri) पर्व को लेकर एक और कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण के रूप में भगवान विष्णु धरती पर अवतरित हुए। वह मथुरा के राजा कंस के भांजे थे। कंस को यह शाप मिला था कि उसकी बहन देवकी का पुत्र उसकी मौत का कारण बनेगा। देवकी की कोख से जन्म लेने के कारण श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने राक्षसी लोहिता को गोकुल भेजा। राक्षसी लोहिता ने पूरे गोकुल में अपना आतंक फैला रखा था। वह अकसर बच्चों को मारकर खा जाती थी। मकरसंक्रांति के दिन श्रीकष्ण के वध के लिए पहुंची। श्रीकष्ण ने लोहिता को खेल-खेल में ही मार डाला। लोहिता के उत्पात से मुक्ति पाकर ब्रजवासियों ने उस दिन आग जलाकर और एक दूसरे को खाद्य सामग्री भेंट कर खुशी मनाई। माना जाता है कि उसी समय से लोहड़ी पर्व की शुरुआत हुई।
जनश्रुतियों के अनुसार मुगलकाल के दौरान पंजाब का एक व्यापारी बेहद क्रूर था, वह वहां की लड़कियों को पकड़कर जबरन बेच दिया करता था। उसके आतंक से महिलाएं अपनी बेटियों को घर से बाहर नहीं निकलने देती थीं। लेकिन, वह कुख्यात व्यापारी घरों में घुसकर लड़कियों को जबरन ले जाता और बेच देता था।(Lohri)
महिलाओं और लड़कियों को बचाने के लिए दुल्ला भट्टी नाम के युवक ने उस व्यापारी से युद्ध किया और कैदकर उसकी हत्या कर दी। उस कुख्यात व्यापारी से बचाने के लिए महिलाओं ने दुल्ला भट्टी का अभ्निनंदन किया और उसके लिए खुशी के गीत गए। माना जाता है कि उसी समय से इस पर्व की शुरुआत हुई।(Lohri)