17 को है आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती : जानें उनके जीवन से जुड़ी मां-बेटे की ये कहानी

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लखनऊ। आद्य शंकराचार्य जयंती के पूर्व रविवार को मुकेश आनंद जी महाराज ने एक वर्चुअल आयोजन में कहा कि शंकराचार्य जी ने मां के लिए परंपरा तोड़ी थी। वे सन्यास में जाने से पहले अपने मां से कहा था कि ‘सन्यासी होने के बाद घर, परिवार, मां से संबंध दूर हो जाता है लेकिन मां तुम्हारे लिए यह परंपरा तोड़ूंगा’।
Aadi Guru Shankaracharya

पंचमी तिथि को गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था

उन्होंने कहा कि प्रति वर्ष 17 मई को आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था। आदिगुरु शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के केरल राज्य में नम्बूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

माँ, मैं ही तुम्हारी बहू हूं

उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जी के जन्म के कुछ वर्षों के बाद ही इनके पिता का निधन हो गया। गुरु शंकराचार्य ने बहुत ही अल्प आयु में वेदों को कंठस्थ कर इसमें महारथ हासिल कर लिया था। उनका अपनी मां के प्रति बेहद स्नेह था। एक बार की बात है उनकी मां ने उनसे विवाह के संबंध में चर्चा की जब उन्होंने उत्तर में कहा कि मेरी सेवा से आप संतुष्ट नहीं है जो बहु की बात कर रही हैं। माँ, मैं ही तुम्हारी बहू हूं।
मां के बहू पाने के लालसा को समझते हुए उन्होंने एक बार नदी स्नान के समय जोर-जोर से चिल्लाते हुए कहा कि मां मेरे पैर को मगर ने पकड़ लिया है। इसके बाद शंकराचार्य जी की मां ने ईश्वर से अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी। तभी शंकराचार्य जी ने कहा कि मां, अगर आप मुझे सन्यास लेने दोगी तो यह मगर मेरा पांव छोड़ देगा। उनकी मां ने अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिए सन्यास लेने पर अपनी सहमति दे दी।

आपकी चरण धूलि पाने के लिए आऊंगा

उन्होंने मां से शंकराचार्य जी की निकटता के संबंध में कहा कि इस घटना के बाद उनकी मां ने शंकराचार्य जी के सन्यास लेने पर कहा कि जो सन्यासी होते हैं उन्हें घर बार और मां से मोह समाप्त हो जाता है। इस पर शंकराचार्य जी ने मां को उत्तर देते हुए कहा कि हे मां, मैं यह परंपरा तोड़ते हुए अपनी मां के प्रति सदैव स्नेह रखूंगा। आपकी चरण धूलि पाने के लिए आऊंगा।
उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जी के जीवन में उनके मां से जुड़ा हुआ यह प्रसंग सभी को पढ़ने और समझने की आवश्यकता है। इससे बेहद ही ज्ञान की शिक्षा मिलती है। हमें अपने जीवन में भी अपने पांव को मगर से छुड़ाना होगा और पूर्ण मनोयोग से कार्य में लगाना पड़ेगा।
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