डेस्क ।। रमजान का मुबारक महीना चल रहा है और इस पूरे महीने मुस्लिम समाज के लोग रोजा (व्रत) रखते है। मुस्लिम रोजे के दौरान सुबह शहर व शाम को इफ्तार खाते हैं। मोहम्मद साहब के समय से हर मुसलमान रोजे रखता चला आ रहा है। क्या आपको पता है कि मुसलमान 30 दिन भूखा प्यासा रह कर रोजा क्यों रखते हैं। अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं-
इस्लाम धर्म के अनुसाल, रमज़ान के महीने को नेकियों और खुद पर काबू रखने का मुबारक महीना माना जाता है। बताया जाता है कि रोजे रहने से दुनियाभर के गरीब लोगों की भूख और दर्द को समझा जाता है। क्योंकि तेज़ी से आगे बढ़ते दौर में लोग नेकी और दूसरों के दुख-दर्द को भूलते जा रहे हैं। तो वहीं रमज़ान में इसी दर्द को महसूस किया जाता है।
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केवल भूखे रहकर दूसरों के दर्द को समझने के अलावा इस महीने के रोज़े को कान, आंख, नाक और जुबान का रोज़ा भी माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि रोज़े के दौरान ना बुरा सुना जाता है, ना बुरा देखा जाता है, ना बुरा अहसास किया जाता है और ना ही बुरा बोला जाता है।
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यह पूरा महीना आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना होता है। इसी वजह से हर मुस्लिम रोज़ा रख खुद को बाहरी और अंदरूनी हर ओर से पाक-साफ रखता है। यानी खुद की इच्छाओं पर संयम रख बुरी आदतों को छोड़ने की कोशिश करता है।
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हदीस के मुताबिक, रमज़ान के महीने को 3 भागों में बांटा जाता है। पहले 10 दिन का भाग ‘रहमतों का दौर’ बताया गया है। दूसरा 10 दिन के भाग को ‘माफी का दौर’ कहा जाता है और आखिरी 10 दिन को ‘जहन्नुम से बचाने का दौर’ बताया जाता है।
फोटोः फाइल
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