श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा जिसे गोल्डन टेंपल के नाम से जाना जाता है, उसका निर्माण कार्य 6 नवंबर 1573 को शुरू हुआ और इसके साथ ही 1570 को इसका काम पूरा भी हो गया। शहर मंदिर साहिब स्वर्ण मंदिर के रूप में लोकप्रिय तब हुआ जब महाराजा रणजीत सिंह ने 1830 के दशक में इसकी उपरी मंजिल को पूरी तरह से सोने में रंग दिया और सोने की परत से सजा देने के बाद इस मंदिर में चार चांद लग गए। जिसके बाद मंदिर की खूबसूरती अपने आप बढ़ती चली गई।
साथ ही मंदिर के इर्दगिर्द बने सरोवर पर इस मंदिर का दर्पण जब पड़ता है तब इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। हरमिंदर साहिब गुरुद्वारे के इर्दगिर्द बना सरोवर 500 फीट लंबा, 490 फुट चौड़ा और 17 फिट गहरा है। इसमें उतरने के लिए 11 सीढ़ियां बनी हुई है। निचली सीढ़ियां जो पानी में डूबी रहती है, सवा फिट चौड़ी और डेढ़ फिट ऊंची है।
वैसे तो पहले यह सरोवर केवल बारिश के पानी से भरता था और बारिश न होने पर सूख जाया करता था। जिसके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान 1866 में इसे ऊपरी बारी दोआब नहर से जोड़ दिया गया और तब से वहां से इसके पानी की पूर्ति की जाने लगी। अमृत सरोवर एक मानव निर्मित झील है। इसको बहुत ही सारी मान्यताओं से बनाया गया है।
इस झील का निर्माण सिखों के चौथे गुरु गुरु रामदास जी द्वारा किया गया था। कहा जाता है कि इस झील का पानी बेहद पवित्र होता है और शरीर की शुद्धता के साथ साथ यह मन को भी शुद्ध करने की ताकत रखता है। इस तालाब में कई हजारों मछलियां है जिसकी वजह से इस सरोवर में जो लोग स्नान करते हैं उनको शैम्पू, साबुन जैसी कई तरह की चीजों का इस्तेमाल करने की मनाही होती है।
साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता है कि इन मछलियों को टाइम टू टाइम लोग खाना खिलाते रहें, दाना डालते रहें। बहुत सारी मान्यताएं हैं जो सरोवर अपने अंदर समेट के बैठा हुआ है। इस सरोवर के अंदर जो जल है वह बहुत ही पवित्र जल माना जाता है। जिसे लोग पीते भी हैं, ग्रहण भी करते हैं, उससे स्नान भी करते हैं और ऐसी मान्यताएं हैं कि अगर आपके शरीर में कोई रोग है, कोई आपको प्रॉब्लम है और आप अगर इस जल का सेवन करते हैं तो आपको हर प्रॉब्लम से आराम से छुटकारा मिल सकता है।
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