इस बलात्कारी बाबा को जेल से बाहर लाने की तैयारी में बीजेपी सरकार, सीएम और दो मंत्री खुलकर कर रहे पैरवी

img

नई दिल्ली।। बलात्कार के दो मामलों में 20 वर्ष की सजा काट रहा गुरमीत राम रहीम जेल से बाहर आने के लिए बेताब है, तो हरियाणा सरकार उसे वापस डेरे में पहुंचाने की तैयारी कर रही है। सरकार और बाबा की जल्दबाजी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि नियम-कानून भी आड़े नहीं आ रहे हैं।

मजे की बात यह है कि हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, जेल मंत्री कृष्ण पवार और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने खुद गुरमीत राम रहीम को पैरोल देने की पैरवी की है। अनिल विज ने तो यहां तक कह दिया कि गुरमीत सिंह राम रहीम एक आम इंसान के अधिकार के चलते पैरोल का हकदार है।

नियमों के मुताबिक दो वर्ष की सजा पूरी होने के बाद ही पैरोल दी जा सकती है, लेकिन गुरमीत राम रहीम ने दो वर्ष पूरे होने से पहले ही पैरोल के लिये अर्जी दाखिल कर दी। उधर, सुनारिया जेल प्रशासन ने दो वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले ही पैरोल के आवेदन को स्वीकार कर यह साबित कर दिया है कि बाबा का दबदबा आज भी कायम है।

गौरतलब है कि हरियाणा में इस वर्ष अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। गुरमीत राम रहीम के डेरे का मुख्यालय सिरसा में है। हरियाणा में उसके अनुयायियों की संख्या लाखों में है। अगर गुरमीत राम रहीम को पैरोल दी जाती है, तो इसमें एक और जहां सरकार का फायदा है। वहीं दूसरी और बाबा को भी खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलेगा।

राम रहीम के बाहर आ जाने से सिरसा में सुनसान पड़ा डेरा सच्चा सौदा फिर से गुलजार हो जायेगा। राम रहीम डेरे में लौटकर फिर से अपने समर्थक जमा कर सकता है। वहीं सरकार इसके एवज में अपना वोट बैंक मजबूत कर सकती है। हालांकि हरियाणा सरकार के इस फैसले का चारों और विरोध हो रहा है।

दो वर्ष पहले पंचकूला सहित कई स्थानों पर हुये खून खराबे को याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं। उधर, हरियाणा सरकार के अधिकारियों ने माना है कि हरियाणा के गृह विभाग के पास गुरमीत राम रहीम का पैरोल आवेदन पहुंचा है, लेकिन सरकार ने फिलहाल उसके आवेदन पर कोई फैसला नहीं लिया है।

प्रदेश के गृह सचिव के मुताबिक अभी सरकार ने सिरसा और रोहतक जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है कि क्या गुरमीत राम रहीम को पैरोल दी जानी चाहिए? क्या उसको पैरोल देने के बाद इन जिलों में कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है?

फिलहाल, गुरमीत राम रहीम के पैरोल के आवेदन ने हरियाणा के राजनीतिक सियासत में फिर से हलचल पैदा कर दी है। देखना ये होगा कि गुरमीत राम रहीम को जेल से छुट्टी मिलती है या फिर उसकी और बीजेपी की एक दूसरे से फायदा उठाने की योजना धरी की धरी रह जायेगी।

कानून के जानकार बताते हैं कि पैरोल दो प्रकार की होती हैं, पहली कस्टडी पैरोल और दूसरी रेग्यूलर पैरोल। कस्टडी पैरोल उस स्थिति में दी जाती है, जब कैदी के परिवार में किसी की हो मौत जाये या फिर परिवार में किसी की शादी हो या फिर परिवार में कोई बहुत बीमार हो। इसके अलावा अति विशेष परिस्थिति में कस्टडी पैरोल दी जाती है। कस्टडी पैरोल के लिए कैदी जेल अधीक्षक को आवेदन करता है। अगर जेल प्रशासन आवेदन खारिज कर दे तो कोर्ट में अपील की जा सकती है। कस्टडी पैरोल के दौरान आरोपी या दोषी को पुलिस अभिरक्षा में जेल से बाहर लाया जाता है। इसकी अधिकतम अवधि 6 घंटे होती है।

रेगुलर पैरोल दोषी कैदी को ही दी जाती है। अंडर ट्रायल कैदी के लिये इसका प्रावधान नहीं है। इसमें दोषी के लिये एक समय सीमा भी निर्धारित होती है। रेगुलर पैरोल उस दोषी मुजरिमों को नहीं दी जाती, जिसने रेप के बाद हत्या की घटना को अंजाम दिया हो और वह दोषी करार दिया गया हो। पैरोल पाने के लिए कैदी का भारतीय नागरिक होना भी ज़रूरी है। आतंकवाद या देशद्रोह से जुड़े मामलों के दोषी को पैरोल नहीं दी जा सकती। रेगुलर पैरोल एक बार में एक माह के लिये दी जाती है। विशेष स्थिति में इसे बढ़ाया जा सकता है।

विधि विशेषज्ञों के मुताबिक पैरोल का फैसला प्रशासनिक होता है। अगर जेल प्रशासन और गृह विभाग से पैरोल का आवेदन निरस्त हो जाये तो इसके लिये दोषी अदालत जा सकता है। पैरोल का आवेदन वही कैदी कर सकता है, जो सजा काट रहा हो। उसका कोई आवेदन किसी भी अदालत में विचाराधीन नहीं होना चाहिए। पैरोल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है।

शर्त यह है कि सम्बंधित कैदी का जेल में कंडक्ट अच्छा होना चाहिए। अगर वो पहले जमानत पर छूटा है, तो उस दौरान उसने कोई गलत काम ना किया हो साथ ही पैरोल या जमानत की शर्त को पहले कभी भी ना तोड़ा हो। नियमानुसार 6 माह बीतने के बाद दूसरे पैरोल के लिए आवेदन किया जा सकता है। पैरोल का आवेदन कैदी जेल अधीक्षक को देता है और वह उस आवेदन को गृह विभाग के पास भेजता है ताकि उस पर फैसला लिया जा सके।

Related News