पीडीपी से समर्थन वापस लेने के बाद हालांकि वर्तमान राज्यपाल एनएन वोहरा का कार्यकाल बढ़ा दिया गया है। मगर सरकार में उच्च स्तर पर नए राज्यपाल की नियुक्ति की संभावना पर भी विमर्श हो रहा है। भाजपा का मानना है कि सेना के खिलाफ पीडीपी के अभियान और पत्थरबाजों के खिलाफ हुए एफआईआर वापस लेने जैसे फैसले का भाजपा को जम्मू-लद्दाख संभाग और सूबे के बाहर सियासी नुकसान हुआ है। इस सियासी नुकसान की आतंकवाद के खिलाफ सख्ती दिखा कर ही की जा सकती है। इसका सीधा सा संदेश है कि सूबे में पहले से ही आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट को और सख्ती से चलाया जाएगा।
जहां तक राज्य विधानसभा में सीटों का समीकरण है तो यह बेहद उलझा हुआ है। भाजपा का पीडीपी का साथ छोड़ने के बाद किसी भी दल के लिए गठबंधन बनाना आसान नहीं होगा। दरअसल 87 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 44 है। पीडीपी के पास 28, भाजपा के पास 25, एनसी के पास 15, कांग्रेस के पास 12 और अन्य के पास 07 विधायक हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि नई सरकार बनाने के लिए पीडीपी, कांग्रेस और एनसी तीनों को साथ आना होगा। इसमें एनसी और पीडीपी के हाथ मिलाने की संभावना दूर-दूर तक नहीं है।