संघ और पार्टी दोनों ही स्तर पर फीडबैक में यह बात सामने आई कि खासतौर पर आतंकवाद के सवाल पर सूबे की सरकार की नाकामियों का न सिर्फ जम्मू और लद्दाख बल्कि सूबे के बाहर भी गलत संदेश जा रहा है। भाजपा को उम्मीद है कि पीडीपी से नाता तोडने का उनके समर्थक वर्ग में सकारात्मक संदेश जाएगा।
दरअसल संघ दो वर्ष पहले से ही पीडीपी से नाता तोडने के पक्ष में था। हालांकि तब सरकार और पार्टी को हालात अपने पक्ष में कर लेने की उम्मीद थी। इसी दौरान संघर्ष विराम की घोषणा के बाद सेना के जवान औरंगजेब और पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या और इससे पहले सेना के अधिकारियों पर सोपियां मामले में एफआईआर करने जैसे मामले से भाजपा-पीडीपी के रिश्ते खराब हुए। यही कारण है कि केंद्र ने राज्य की सीएम महबूबा मुफ्ती की ईद के बाद भी संघर्ष विराम जारी रखने की सलाह को ठुकरा दिया।
सूत्रों के मुताबिक बीते हफ्ते सूरजकुंड की संघ की अपने अनुषांगिक संगठनों, भाजपा के संगठन मंत्रियों की बैठक में इस विषय में गहन चर्चा हुई। बीते शुक्रवार को संघ के वरिष्ठ अधिकारियों ने पीएम के यहां डिनर पर शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ भी इसी विषय पर मंथन किया। इसके बाद पीएम और शाह ने अलग-अलग राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी चर्चा की।
बताते हैं कि एनएसए सहित अन्य एजेंसियों ने भी सूबे में हालात में तत्काल सुधार आने की संभावना से इंकार किया था। जम्मू-कश्मीर के संगठन मंत्री ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सरकार में शामिल होने का नकारात्मक असर सूबे की पार्टी की जम्मू की दो और लदख की एक सीट पर भी पड़ रहा है। जबकि संघ का फीडबैक था कि इसका नकारात्मक असर देश भर में समर्थकों के बीच भी है।