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गाजियाबाद/दिल्ली।। समाजसेवा की कहीं तालीम नहीं दी जाती है, लेकिन यह जज्बा इंसान के अंदर जब पैदा हो जाता है, तो नौकरीपेशा हो या राजनेता हर किसी की पहचान बन जाता है। ऐसा ही एक मामला विश्वकर्मा समाज दिल्ली से है। समाज सेवा के रूप में सबसे चर्चित चेहरे के रूप में दिनेश वत्स को जाना जाता है।
दिनेश कुमार वत्स वैसे तो रहने वाले हापुड़ के हैं, लेकिन ज्यादातर समय दिल्ली में ही रहे। पढ़ाई लिखाई दिल्ली में की। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग वर्ष 1977 से लेकर 40 साल तक विभिन्न विभागों में काम किया। दिनेश कुमार वत्स वर्ष 1984 में केंद्र सरकार के अखिल भारत पर्यटन विभाग में टूरिज्म से भी जुड़े।
अपने 40 साल के कार्यकाल में दिनेश कुमार वत्स ने पूरे देश का भ्रमण किया और पर्यटन को बढ़ावा करने के लिए कार्य किया। होटल इंजीनियरिंग में उन्हें महारत हासिल है। दिनेश कुमार वत्स विश्वकर्मा केंद्रीय पर्यटन विभाग से उच्च पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। सेवानिवृत्त होने के पश्चात जून 2016 से वह विभिन्न प्राइवेट सेक्टर से जुड़े हैं।
नौकरी और समाज सेवा साथ-साथ
दिनेश कुमार वत्स बताते हैं कि उन्होंने सामाजिक कार्य की शुरुआत 2013 में शुरू कर दी थी। इसमें उनका मिलनसार स्वाभाव और लोगों की सेवा के प्रति जो निष्ठा थी वह काफी कारगर रही। Facebook और Twitter पर दिनेश वत्स के 10 लाख से ज्यादा विश्कर्मा वंशज इनसे जुड़े हुए हैं।
विश्कर्मा धाम में निभाई मुख्य भूमिका
सामाजिक कार्यों के प्रति रुझान की वजह से दिनेश सिर्फ 6 महीने अखिल भारतीय विश्वकर्मा महासभा के केंद्रीय एग्जीक्यूटिव कमेटी (सीसीसी)के पदाधिकारी बन गए। हाल ही में उन्होंने उज्जैन में हुए विश्कर्मा धाम अखिल भारत विश्वकर्मा साधु-संत समावेश बेंगलुरु में मुख्य भूमिका निभाई।
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यही नहीं दिनेश कुमार वत्स बताते हैं कि समाजसेवा उन्हें नई ऊर्जा देती है। यही वह है कि वह अनेक कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। इनके कार्यक्रमों की मुख्य उपयोगिता यह है कि विश्कर्मावंशज मनु, मय, त्वष्टा, देवयज्ञ, शिल्पी सभी विराजमान रहते हैं।
संपन्न परिवार से थे, लेकिन जमीन से जुड़े रहे दिनेश कुमार वत्स विश्वकर्मा जन्म 1 जुलाई 1958 को हापुड़ में हुआ था। पढ़ाई लिखाई का काम और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग सबकुछ दिल्ली में ही हुई। इसके बाद वह नौकरी में आए, लेकिन समाज के जमीन से जुड़े रहे।
दिनेश वत्स बताते हैं कि उनके पिताजी बिशन स्वरूप वत्स इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से डबल एमए थे। उस समय यह बड़ी बात थी। एमए करना भी अपने आप में शिक्षा का उच्च दर्जा होता था। इसके बाद वह दिल्ली सरकार के एजुकेशन विभाग में वर्ष 1957 के दौरान कई स्कूलों में पीजीटी फिर वाइस प्रिंसिपल और उसके बाद प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए। पिता बिशन ने स्वाभिमान और समाजसेवा का जो जज्बा बच्चों में पैदा किया वह आज भी सभी के अंदर है। बिशन स्वरुप का वर्ष 2005 में दिल्ली में स्वर्गवास हो गया।
दादा जी पांच बार बने नगर पालिका के चेयरमैन
ऐसा नहीं है कि दिनेश वत्स का परिवार के केवल नौकरी-पेशा ही रहा। उनके दादा चोखेलाल बहुत मेहनती थे। उन्होंने 14 साल की उम्र में घर बार छोड़कर काम करना शुरु कर दिया था। 40 साल की उम्र में वह देश दुनिया में प्रसिद्ध हो गए थे। लकड़ी का उनका काम पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ था। हापुड़ के नगर पालिका में दादा चोखेलाल लगातार 5 बार चेयरमैन रहे।
नाना जी जी के बारे में भी दिनेश बताते हैं कि उनका नाम मंगत राम था लकड़ी की शिल्पकारी में उन्हें महारत हासिल थी, उन्होंने चंदन की लकड़ी और अन्य लकड़ियों से जैन समाज के लिए 10 रथ बनाएं और उन पर सोने की नक्काशी की। यह रथ आज भी जैन मंदिरों के प्रांगण में शोभा बढ़ा रहे हैं। समाज सेवा के साथ विदेशी कंपनियों को कंसल्टेंसी वर्तमान में दिनेश कुमार वत्स सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद वर्ष 2016 से समाजसेवा में जुटे हैं। अपने मिलनसार स्वभाव और कार्यशैली की वजह से वह विदेशी कंपनियों को कंसल्टेंसी की सेवाएं भी दे रहे हैं।
दिनेश कुमार वत्स ने विश्वकर्मा पूजा पर देशवासियों को हार्दिक बधाई दी है।
फोटो : फाइल
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