omg!! भारत के इस राज्य में परंपरा के नाम पर होता है नंगा नाच, नाम सुनकर हिल जाएंगे आप

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अजब-गजब ।। बिहार के सारण और वैशाली जिले के सीमा पर मोक्षदायिनी गंगा और गंडक नदी के संगम सोनपुर क्षेत्र में लगने वाले मेले में सैलानियों को आकर्षित करने के लिए बिहार पर्यटन विभाग की तरफ से जोरदार कोशिश की जा रही हैं। यूं तो एशिया के सबसे बड़े पशु मेला की पहचान बनाए रखने की लगातार कोशिशें भी हो रही है, मगर इस मेले की पहचान परंपरागत नौटंकी का आज विकृत रूप दिखने लगा है।

कहा तो यहां तक जाने लगा है कि थियेटर मालिक अब नृत्य के नाम पर ‘बार डांसर’ को स्टेज पर उतार रहे हैं। ऐतिहासिक सोनपुर मेला के जानने और समझने वाले भी इस बात की तसदीक करते हैं कि, अब न वह नौटंकी रही और न वैसे कलाकार रहे। अब तो इस सोशल मीडिया के दौर में केवल अश्लीलता परोसी जा रही है।

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प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होने वाला यह मेला कहने को तो एक महीने चलता है, मगर इस मेले को देखने के लिए देश ही नहीं, विदेश तक के सैलानी पहुंचते हैं।

छपरा जे. पी. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे और हरिहरनाथ मंदिर समिति के सदस्य प्रोफेसर चंद्रभूषण तिवारी एक मीडिया एजेंसी से कहते हैं कि ‘हरिहर छेत्र मेला’ और ‘छत्तर मेला’ के नाम से भी जाने जाना वाला सोनपुर मेले की शुरुआत कब हुई, इसकी कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह उत्तर वैदिक काल से माना जाता है।

उन्होंने यहां परंपरागत नौटंकी के संबंध में पूछे जाने पर बताया कि बिहार के सुप्रसिद्ध कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर बनी फिल्म ‘तीसरी कसम’ और उसका हीरामन और सर्कस में लगे थियेटर की नर्तकी हीराबाई के माहौल की याद ताजा करने के लिए लोग यहां नौटंकी देखने आते थे।

वे कहते हैं, “ऐसी बात नहीं की इस मेले की परंपरा नौटंकी रही है। कलांतर में लोगों के मनोरंजन के लिए यहां नौटंकी की शुरुआत की गई जो बाद में इसकी पहचान बन गई। मेले में घूमने और देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे और रात मेले में ही गुजारते थे और फिर जरूरत के सामान की खरीदारी कर वापस लौट जाते थे।

रात में लोगों के मनोरंजन के लिए इसकी शुरुआत की गई।” जे. पी. विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे और मेला पर शोध कर रहे प्रोफेसर वी. के. सिंह कहते हैं कि पूर्व में पारसी थियेटर दादा भाई ढ़ूढी की कंपनी आया करती थी। इस कंपनी में सोहराब, दोहराब जी, हकसार खां जैसे कलाकार होते थे।

इसके बाद मोहन खां की नौटंकी कंपनी मेले की रौनक बनी, जिसमें गुलाब बाई और कृष्णा बाई जैसी मंजी हुई कलाकार होती थीं, जिन्हें देखने के लिए पूरे राज्यभर से लोग आते थे। उस दौरान यह मेला रातभर ठुमरी अैर दादरा के बोल से गुलजार रहता था। उन्होंने कहा कि अब न वैसे कलाकार हैं और ना ही पहले जैसे उसके कद्रदान हैं।

बकौल सिंह, “आज यहां आने वाली नौटंकी में अश्लीलता घर कर गई और नौटंकी का रूप बदल गया। अब नौटंकी नहीं, इसकी जगह देह प्रदर्शन कर पैसे कमाने का धंधा चलने लगा। हर साल यहां 5 से 6 थियेटर कंपनियां आती हैं।

फोटो- फाइल

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