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नई दिल्ली॥ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. यहां बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है. विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी को निराश करने वाला ही माना जा रहा है. दरअसल महाराष्ट्र में भले ही बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें जीती हो, लेकिन पिछली बार से कम सीटों पर ही जीत सकी है. बता दें कि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ सतारा लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हुए.

सतारा संसदीय सीट से एनसीपी के श्रीनिवास दादासाहेब पाटिल ने जीत दर्ज की है. इस तरह से बीजेपी ने विधानसभा में सीटें कम होने के साथ-साथ सतारा सीट भी गंवा दी है. वहीं कांग्रेस और एनसीपी सम्मानजनक सीटें हासिल करने में कामयाब रही है. खास बात यह है कि महाराष्ट्र में एनसीपी ने न केवल अपने प्रदर्शन को बेहतर किया बल्कि अपने वरिष्ठ सहयोगी की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़कर अधिक सफलता पायी.

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महाराष्ट्र की 288 सीटों के नतीजों में बीजेपी शिवसेना गठबंधन को सामान्य बहुमत मिला है. बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिल गयी हैं. राज्य में सामान्य बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए. जबकि राज्य में कांग्रेस ४४ और एनसीपी को 5४ सीटें मिली हैं. वहीं १३ सीटों पर निर्दलीयों ने बाजी मारी है. जबकि ३ सीट बहुजन विकास आघाड़ी, २ सीट एआईएमएम, २ सीट समाजवादी पार्टी एवं बांकी अन्य को मिला है. इस बार महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का भी खाता खुला है और उसे १ सीट हासिल हुई है. पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी के साथ-साथ शिवसेना की ताकत भी घटी है.

चुनाव परिणामों से जो बातें खुल कर सामने आई हैं, उनमें प्रमुख है- फडणवीस सरकार के मंत्रियों को लेकर मतदाताओं की नाराजगी. गोपीनाथ मुंडे की बेटी और प्रमोद महाजन की भांजी पंकजा मुंडे को परली सीट पर भारी शिकस्त झेलनी पड़ी है. यह दिलचस्प है कि इन मंत्रियों में से ज्यादातर लोगों के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव प्रचार किया था. इसके बावजूद इनका हारना बताता है कि मोदी का जादू भी इनके पक्ष में नहीं चल सका.

दूसरी बात यह रही कि अधिकतर दलबदलुओं को जनता ने नकार दिया है. बीजेपी-शिवसेना के 220 सीटों से आगे जाने की हवा भी महाराष्ट्र की जनता ने निकाल दी है और गठबंधन को इस लक्ष्य से लगभग 60 सीटें कम मिल रही हैं. बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्र, शहरी क्षेत्र, अनुसूचित जाति बहुल सीटों, सुगर बेल्ट और मराठवाड़ा में वोटों का काफी घाटा हुआ है.

एक बात तो तय है कि जनविरोधी लहर, राज्य में आर्थिक मंदी, लोकल ट्रेनों और ट्रैफिक जाम की घुटन, घटता निवेश, बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या, बाढ़ से तबाही जैसी ज्वलंत समस्याओं और शरद पवार की एनसीपी के बेहतर प्रदर्शन के बावजूद देवेंद्र फडणवीस ने अगर शिवसेना के साथ मिलकर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है, तो उनका कद राज्य की राजनीति और पार्टी में गया है

. इस बार के महाराष्ट्र चुनावों में भाजपा जिस तरह से नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रही थी, उसी सुर में देवेंद्र फडणवीस के नाम पर भी वोट मांगे जा रहे थे. स्पष्ट बहुमत के चलते अब एकनाथ खड़से, प्रकाश मेहता और विनोद तावड़े जैसे मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी उनकी राह का रोड़ा नहीं बन पाएंगे. इतना जरूर है कि शरद पवार जैसे अनुभवी दिग्गज आखिरी दम तक सरकार बनाने का प्रयास नहीं छोड़ेंगे, लेकिन संख्या बल इसमें उन्हें शायद ही सफल बनाए.

शिवसेना मलाईदार पदों को लेकर आखिरी संभावना तक सौदेबाजी करेगी. शिवसेना ने दावा ठोक दिया है कि राज्य में फिफ्टी-फिफ्टी के फार्मूले पर ही सरकार बनेगी. शिवसेना विधानसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से उत्साहित है और वह सरकार पर दबाव बना कर श्रेष्ठतम हासिल करने की रणनीति पर चल रही है. पिछले पांच सालों में उद्धव ठाकरे को बार-बार झुका कर फडणवीस ने अपनी राजनीतिक सामर्थ्य और कौशल का परिचय दिया है. उम्मीद है कि आगे भी नूरा कुश्ती के बीच नई सरकार को कार्यकाल पूरा करने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

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