नेशनल डेस्क ।। पेट्रोल व डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कटौती कर जनता को राहत देने के सरकार के फैसले से राजकोषीय संतुलन नहीं बिगड़ेगा। सरकार का कहना है कि पेट्रोल व डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में डेढ़ रुपये प्रति लीटर की कटौती से सरकारी खजाने पर मात्र 10,500 करोड़ रुपये का बोझ आएगा जो चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे का मात्र का 0.05 प्रतिशत है। हालांकि केंद्र ने जनता को राहत देने का जो फॉर्मूला अपनाया है, उससे सरकारी तेल कंपनियों की सेहत पर असर पड़ना तय है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती के बावजूद सरकार राजकोषीय घाटे को काबू रखने में कामयाब रहेगी। सरकार पहले ही उधार लेने की अपनी योजना में 70,000 करोड़ रुपये की कटौती कर चुकी है। इसके अलावा तेल कंपनियों को विदेश से 10 अरब डॉलर राशि उधार लेने संबंधी छूट भी दी है। उन्होंने कहा कि जब पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होंगी तो उपभोक्ता अन्य चीजों पर खर्च कर सकेंगे जिससे मांग बढ़ेगी।
जेटली ने साफ कहा कि उनकी सरकार टैक्स रेट बढ़ाकर नहीं बल्कि टैक्स बेस बढ़ाकर खजाना भरने में यकीन रखती है। उनका इशारा नोटबंदी और जीएसटी के बाद प्रत्यक्ष व परोक्ष करदाताओं की संख्या में वृद्धि की ओर था।
पढ़िए- 100 रुपए सस्ती मिलेगी LPG गैस, सामने आई बड़ी वजह
राजस्व प्राप्तियों व ऋण-भिन्न पूंजी प्राप्तियों और कुल व्यय के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं। चालू वित्त वर्ष में सरकार का बजट 24.42 लाख करोड़ रुपये का है और इसमें राजकोषीय घाटा 6.24 लाख करोड़ यानी 3.3 प्रतिशत है। इस हिसाब से पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने के फैसले का कुछ खास असर नहीं पड़ेगा।
सरकार नवंबर 2014 से लेकर अब तक पेट्रोल-डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क नौ बार बढ़ा चुकी है जबकि कटौती सिर्फ एक बार ही की है। पिछले साल सरकार ने अक्टूबर में केंद्रीय उत्पाद शुल्क घटाया था। अब पुन: कटौती का फैसला किया गया है। यही वजह है कि सरकार केंद्रीय करों में राज्यों को 42 प्रतिशत हिस्सेदारी देने के बावजूद अपना राजकोषीय संतुलन बनाए रखने में कामयाब रही है। पिछले वित्त वर्ष में सरकार को पेट्रोल-डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क के जरिये 2.28 लाख करोड़ रुपये सरकार के खजाने में आए थे। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लगभग 43 हजार करोड़ रुपये पेट्रोल-डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क के रूप में सरकार के खजाने में आ चुके हैं।
हालांकि जेटली ने स्वीकार किया कि चालू खाते के घाटे को काबू रखने की चुनौतियां बरकरार हैं। सरकार गैर-जरूरी आयातों को कम करने तथा भारतीय कंपनियों को मसाला बांड जारी कर विदेश से पूंजी जुटाने की अनुमति देने जैसे निर्णय कर चुकी है।
पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम करने के लिए सरकार ने जो फॉर्मूला अपनाया है, उसका असर तेल कंपनियों की सेहत पर पड़ना तय है। दरअसल तेल कंपनियों को एक रुपया प्रति लीटर के हिसाब से कीमत कम करनी पड़ेगी। ऐसे में उन पर बोझ पड़ेगा। यही वजह है कि वित्त मंत्री ने जैसे ही यह घोषणा कि बाजार पर इसका असर दिखा।
शेयर बाजार में तेल कंपनियों के शेयर में गिरावट दर्ज की गई। सरकारी तेल कंपनी एचपीसीएल का शेयर 12.23 प्रतिशत गिरकर 220.60 रुपये पर बंद हुआ जबकि बीपीसीएल के शेयर में भी 10.89 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 336.35 रुपये पर बंद हुआ। इसी तरह इंडियन ऑयल के शेयर में 10.57 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और यह 140.85 रुपये पर बंद हुआ। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के प्राइवेट क्लाइंट ग्रुप व कैपिटल मार्केट स्ट्रैटजी प्रमुख वीके शर्मा का कहना है कि तेल कंपनियों पर एक रुपया प्रति लीटर का बोझ पड़ने से उनके लाभ पर प्रतिकूल असर पड़ने का अनुमान है।
उल्लेखनीय है कि वैश्विक आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 85 डालर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गया है। कच्चे तेल का यह भाव बीते चार साल में सर्वाधिक है। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक से कीमतें घटाने की मांग की है। ईरान और वेनेजुएला से तेल की आपूर्ति घटने के चलते अब सबकी नजर ओपेक पर ही टिकी हैं कि यह संगठन कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाए।
फोटो- फाइल
--Advertisement--