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Up kiran,Digital Desk : राजनीति में कभी-कभी एक छोटा सा मुद्दा भी बड़ी-बड़ी हार का कारण बन जाता है। दिल्ली नगर निगम (MCD) के मुंडका वार्ड में बीजेपी के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। यहां आम आदमी पार्टी (AAP) ने भले ही बाजी मार ली हो, लेकिन बीजेपी की हार की कहानी लिखी है UER-2 पर बने एक टोल प्लाजा ने।

यह कहानी है जनता के गुस्से, नेताओं की अनदेखी और एक आधे-अधूरे समाधान की, जिसने जीत को हार में बदल दिया।

क्या थी टोल प्लाजा की कहानी?

मुंडका वार्ड के बीचों-बीच बने इस टोल प्लाजा ने आस-पास के कई गांवों के लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था। खेती-किसानी, व्यापार और अपने रोज के काम के लिए उन्हें दिन में कई बार इस रास्ते से गुज़रना पड़ता था, और हर बार टोल देना पड़ता था।

गुस्साए ग्रामीणों ने महीनों तक आंदोलन किया, पंचायतें कीं, सड़कें जाम कीं और अपनी आवाज़ केंद्रीय राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा तक भी पहुंचाई, लेकिन नतीजा? सिफर। उनकी मांगों को लगातार नज़रअंदाज़ किया जाता रहा।

जब हार का डर सताया तो चली 'चुनावी चाल'

जब बीजेपी को यह एहसास हुआ कि ज़मीन पर गुस्सा बहुत ज़्यादा है और चुनाव हाथ से निकल सकता है, तो एक अनौपचारिक ऐलान किया गया कि 60 गांवों को टोल से छूट दी जाएगी।

लेकिन यह फैसला समस्या को सुलझाने के बजाय और उलझा गया।

क्यों उल्टा पड़ गया यह दांव?
इस एक फैसले ने दो तरह का गुस्सा पैदा किया:

  1. कॉलोनी वाले नाराज़ हो गए: टोल प्लाजा के पास बसी हज़ारों की आबादी वाली कॉलोनियों को इस छूट से बाहर रखा गया। इन लोगों को लगा कि उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जा रहा है। उन्होंने बीजेपी को सीधी चेतावनी दी कि अगर 29 नवंबर तक उन्हें छूट नहीं मिली, तो 30 नवंबर को वे वोट से चोट करेंगे। और उन्होंने ठीक वैसा ही किया।
  2. गांव वाले भी खुश नहीं हुए: जिन 60 गांवों को छूट दी गई थी, उन्होंने भी इसे 'चुनावी जुगाड़' माना। उनका कहना था कि जब हम महीनों से आंदोलन कर रहे थे, तब किसी ने नहीं सुनी। अब चुनाव के ठीक पहले यह 'अनौपचारिक' ऐलान सिर्फ वोट के लिए है, कोई पक्का समाधान नहीं। इसलिए उनका गुस्सा भी पूरी तरह शांत नहीं हुआ।

नतीजा?

इस दोतरफा नाराज़गी का नतीजा यह हुआ कि बीजेपी मुंडका वार्ड की सीट मात्र डेढ़ हज़ार वोटों के मामूली अंतर से हार गई। यह हार बीजेपी के लिए एक बड़ा सबक है कि ज़मीनी मुद्दों को नज़रअंदाज़ करना कितना महंगा पड़ सकता है।

हार तो कई हुई, पर कुछ की तो 'ज़मानत' भी नहीं बची

MCD के इन 12 वार्डों के उपचुनाव ने सिर्फ जीत-हार ही नहीं दिखाई, बल्कि कई उम्मीदवारों की राजनीतिक हैसियत भी बता दी। तीनों बड़ी पार्टियों के कई उम्मीदवार अपनी ज़मानत (Security Deposit) तक नहीं बचा पाए, जिसका मतलब है कि उन्हें बहुत ही कम वोट मिले।

  • सबसे बुरा हाल कांग्रेस का: 12 में से 9 वार्डों में कांग्रेस उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई। दिचाऊं कलां में तो कांग्रेस का उम्मीदवार चौथे नंबर पर खिसक गया, जो पार्टी के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी है।
  • बीजेपी की भी ज़मानत ज़ब्त: चांदनी चौक वार्ड में बीजेपी का उम्मीदवार अपनी ज़मानत नहीं बचा पाया, जो दिखाता है कि पुराने दिल्ली के इस इलाके में पार्टी की पकड़ कितनी कमज़ोर है।
  • आम आदमी पार्टी भी अछूती नहीं: सत्ता में होने के बावजूद, 'आप' के भी कुछ उम्मीदवारों को हार के साथ-
    साथ ज़मानत ज़ब्त होने का सामना करना पड़ा।

कुल मिलाकर, यह उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए एक आईने की तरह है, जो बता रहा है कि जनता सिर्फ नाम पर नहीं, बल्कि काम और ज़मीनी मुद्दों पर वोट देती है।