
Up Kiran, Digital Desk: प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने 1991 के ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों की प्रकृति पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जो तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के कार्यकाल में हुए थे।
अहलूवालिया का कहना है कि ये सुधार अक्सर माने जाने वाले 'धीरे-धीरे' या 'क्रमिक' (gradualism) तरीके से नहीं हुए थे, बल्कि उन्हें 'चुपके से' या 'गुपचुप' (by stealth) लागू किया गया था।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उस दौर में भारत एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, और ऐसे में बड़े, खुले तौर पर घोषित सुधारों को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाना बेहद मुश्किल था।
सरकार ने आवश्यक बदलावों को इस तरह से लागू किया कि वे तत्काल और व्यापक राजनीतिक विरोध का सामना न करें, जिससे एक 'चुपके' वाली रणनीति अपनाई गई।
अहलूवालिया के अनुसार, इस दृष्टिकोण ने सरकार को संकट से निपटने और भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए जरूरी और साहसिक कदम उठाने में मदद की, भले ही उन्हें पूरी तरह से प्रचारित न किया गया हो
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