Up Kiran, Digital Desk: बांग्लादेश में शुक्रवार को दो अलग-अलग हिंसक घटनाओं ने पूरे देश को हिला दिया। पहली घटना में एक प्रतिष्ठित सूफी संत के शव को अपवित्र कर सार्वजनिक रूप से जला दिया गया, जबकि दूसरी घटना में अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग की सहयोगी जातीय पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आग लगा दी गई। इन घटनाओं ने सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दिया है।
राजबाड़ी में सूफी फकीर नूरा पगला के शव का अपवित्रीकरण
कट्टरपंथी इस्लामवादियों का हमला
पश्चिमी बांग्लादेश के राजबाड़ी जिले में, खुद को “एकेश्वरवादी समूह” बताने वाले कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने सूफी फकीर नूरा पगला की दरगाह पर हमला किया। नूरा पगला का निधन दो सप्ताह पहले हुआ था। शुक्रवार की नमाज़ के बाद इस समूह ने उनकी कब्र खोदी, उसे अपवित्र किया और उनके शव को सार्वजनिक रूप से जला दिया। इस समूह ने सूफी परंपराओं को “गैर-इस्लामी” घोषित कर विरोध जताया।
हिंसक झड़पें और परिणाम
इस अपवित्रीकरण ने नूरा पगला के अनुयायियों और कट्टरपंथी समूह के बीच हिंसक संघर्ष को जन्म दिया। इस टकराव में एक व्यक्ति की मौत हुई और 100 से अधिक लोग घायल हुए। पुलिस वाहनों और स्थानीय प्रशासन प्रमुख की गाड़ी को आग के हवाले कर दिया गया। स्थानीय अस्पताल में 22 से अधिक घायल भर्ती हुए, जबकि गंभीर रूप से घायल चार लोगों को उन्नत इलाज के लिए फ़रीदपुर भेजा गया।
मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के कार्यालय ने इस कृत्य को “अमानवीय और घृणित” बताया और दोषियों को कानून के अनुसार सजा दिलाने का वादा किया।
ढाका में जातीय पार्टी कार्यालय पर आगजनी
राजनीतिक पृष्ठभूमि और बढ़ती तनाव
शुक्रवार की शाम को ढाका के पुराना पलटन में जातीय पार्टी (जेपी) के केंद्रीय कार्यालय में आग लगा दी गई। यह हमला गोनो अधिकार परिषद के नेता नूरुल हक नूर के एक हफ्ते पहले हुए झड़प में गंभीर रूप से घायल होने के बाद हुआ, जहाँ सेना को भी तैनात किया गया था।
गोनो अधिकार परिषद, जो पिछले साल "जुलाई विद्रोह" से जुड़ी है और जिसके कारण पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिर गई थी, इस समय देश में अशांति का केंद्र बनी हुई है। पुलिस ने इस आगजनी के लिए इस समूह को दोषी ठहराया, लेकिन समूह के महासचिव राशिद खान ने इन आरोपों को खारिज करते हुए जातीय पार्टी पर पिछली सरकार के दौरान "नरसंहार" में शामिल होने का आरोप लगाया।
आरोप-प्रत्यारोप और पुलिस की कार्रवाई
राशिद खान ने कहा कि यदि सरकार ने जातीय पार्टी पर प्रतिबंध लगाया होता और उसके अध्यक्ष जीएम कादर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की होती, तो यह घटना टाली जा सकती थी। हिंसा के दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पानी की बौछारें और ध्वनि हथियारों का उपयोग किया। पुलिस उपायुक्त मसूद आलम ने इसका पुष्टि की।
यूएनबी समाचार एजेंसी के अनुसार, हमले से कुछ समय पहले बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी और उनके सहयोगी इलाके में रैली करते देखे गए थे, जिससे राजनीतिक माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया।
सरकार की चुप्पी और सैन्य बल की अनुपस्थिति
पिछली घटनाओं के विपरीत, इस बार जातीय पार्टी कार्यालय पर हमले के बाद सरकार या मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के कार्यालय से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है। साथ ही, घटनास्थल पर सैन्य बल भी तैनात नहीं किए गए हैं, जिससे सुरक्षा और स्थिरता को लेकर चिंता बढ़ गई है।
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