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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है और हर बार की तरह इस बार भी एक सवाल हवा में गूंज रहा है क्या "ओवैसी फैक्टर" फिर से सीमांचल में तहलका मचा पाएगा?
2020 में जब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल की 5 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, तो यह जीत महज संख्याओं का खेल नहीं था। यह एक संदेश था एक नई राजनीतिक ताकत सीमांचल की ज़मीन पर पैर जमा रही है।
लेकिन, यह जीत ज्यादा देर टिक नहीं पाई। दो साल के भीतर ही 4 विधायक राजद में शामिल हो गए, जिससे AIMIM की ताकत घटकर सिर्फ एक सीट पर रह गई।
अब सवाल यह है कि क्या ओवैसी फिर से इस भरोसे को कायम कर पाएंगे? या यह सिर्फ एक "एक्सपेरिमेंट" था जो समय के साथ फीका पड़ गया?
सीमांचल क्यों बना है राजनीति का हॉटस्पॉट?
सीमांचल—जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले आते हैं—बिहार की राजनीति में एक खास पहचान रखता है।
यहाँ मुस्लिम आबादी का घनत्व है:
किशनगंज: लगभग 68%
कटिहार व अररिया: 44-45%
पूर्णिया: करीब 39%
इस जनसंख्या वितरण ने AIMIM को एक मजबूत सामाजिक आधार दिया है। यदि ओवैसी सही उम्मीदवार उतारते हैं और संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करते हैं, तो सीमांचल फिर से उनकी सफलता की ज़मीन बन सकता है।
AIMIM की नजर किन सीटों पर है?
AIMIM इस बार 8 प्रमुख सीटों पर अपना फोकस बनाए हुए है। इनमें 5 सीटें ऐसी हैं जिन्हें पार्टी की "मुख्य पकड़" मानी जाती है:
अमौर
बैसी
बहादुरगंज
कोचाधामन
जोकीहाट
यह वे क्षेत्र हैं जहाँ पार्टी ने या तो जीत हासिल की है या अच्छा प्रदर्शन किया है। इन सीटों पर AIMIM का कैडर तैयार है और मुद्दे भी स्थानीय हैं—बाढ़ राहत, सड़क संपर्क, छात्रवृत्ति और स्वास्थ्य सेवाएं।
बाकी 3 सीटें किशनगंज, ठाकुरगंज और अररिया "एक्सपेंशन ज़ोन" हैं। इन जगहों पर AIMIM को गठबंधन में दरार या वोटों के बिखराव से फायदा मिल सकता है।