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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की नीतीश सरकार द्वारा हाल ही में एक के बाद एक कई आयोगों के गठन ने राज्य की राजनीति में नया उबाल ला दिया है। सवर्ण, महादलित, एससी और मछुआरा आयोग जैसे विभिन्न आयोगों में नियुक्तियों को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन पर 'परिवारवाद' का आरोप लगाते हुए तीखा हमला बोला है। आरजेडी का दावा है कि ये नियुक्तियां चुनावी दांव से ज्यादा कुछ नहीं हैं और इसमें 'जीजा-साला' और 'ससुर-दामाद' जैसे रिश्तों को तरजीह दी गई है।
आयोगों में रिश्तेदारी, आरजेडी का आरोप
नीतीश सरकार ने पिछले तीन दिनों के भीतर कई आयोगों में खाली पड़े पदों को भरा है और साथ ही महादलित व मछुआरा आयोग जैसे नए आयोगों का भी गठन किया है। हालांकि, बिहार अनुसूचित जाति आयोग में की गई नियुक्तियों ने आरजेडी को हमला करने का मौका दे दिया है। इस आयोग में अध्यक्ष के रूप में मृणाल पासवान और उपाध्यक्ष के पद पर देवेंद्र मांझी को नियुक्त किया गया है।
आरजेडी के अनुसार, यहीं से 'परिवारवाद' का एंगल सामने आता है। मृणाल पासवान, लोजपा (आर) के अध्यक्ष चिराग पासवान के जीजा हैं।
देवेंद्र मांझी, हम (हम सेक्युलर) संरक्षक जीतनराम मांझी के दामाद हैं।
आरजेडी का 'झुनझुना आयोग' तंज
इन नियुक्तियों के बाद आरजेडी ने सोशल मीडिया पर नीतीश सरकार पर निशाना साधते हुए एक पोस्ट किया। आरजेडी के फेसबुक पेज पर लिखा गया, "चुनाव से पहले झुनझुना आयोग भी बनेगा। लोजपा, हम, जेडीयू और भाजपा ने मिलकर जीजा-साला, ससुर-दामाद, बेटा-भतीजा आयोग का गठन किया!" यह पोस्ट स्पष्ट रूप से एनडीए गठबंधन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने और चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ लेने का आरोप लगाता है।
एनडीए के 'परिवारवाद' के आरोप का पलटवार
यह विडंबना ही है कि एनडीए गठबंधन, जिसमें भाजपा और जदयू जैसे दल शामिल हैं, अक्सर आरजेडी को 'परिवार की पार्टी' बताते हुए उस पर परिवारवाद का आरोप लगाते रहे हैं। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्यों की राजनीति में सक्रियता को लेकर एनडीए हमेशा से हमलावर रहा है। ऐसे में, अब जब नीतीश सरकार की नियुक्तियों में 'रिश्तेदारी' सामने आई है, तो आरजेडी को पलटवार करने का एक बड़ा मौका मिल गया है। आरजेडी अब नीतीश सरकार द्वारा गठित इन कमीशनों को 'परिवारवादी आयोग' करार दे रही है।
आगामी चुनावों से पहले इन आयोगों का गठन और उनमें की गई नियुक्तियां बिहार की राजनीति में एक नया मुद्दा बन गई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए इस 'परिवारवादी आयोग' के आरोप का किस तरह जवाब देती है और क्या यह मुद्दा मतदाताओं पर कोई असर डाल पाता है।
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