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Up Kiran, Digital Desk: बच्चों का पढ़ाई और रचनात्मक गतिविधियों में मन लगाना आज के समय में अभिभावकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इंटरनेट, मोबाइल फोन, वीडियो गेम्स और सोशल मीडिया ने बच्चों की एकाग्रता को बुरी तरह प्रभावित किया है। इससे न सिर्फ उनका शैक्षणिक प्रदर्शन गिरता है, बल्कि उनका मानसिक विकास भी धीमा हो सकता है।
आज हम बात कर रहे हैं उन उपायों की, जिनसे बच्चों का फोकस बेहतर बनाया जा सकता है और उनकी दिनचर्या को संतुलित रखकर उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाया जा सकता है। ये सुझाव खासकर उन परिवारों के लिए उपयोगी हैं जो शहरी जीवनशैली और व्यस्त दिनचर्या के बीच बच्चों की परवरिश को लेकर चिंतित हैं।
1. परिवार में अनुशासित दिनचर्या सेट करें
बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए घर का माहौल बहुत अहम होता है। अगर माता-पिता खुद एक तय समय पर काम करते हैं, तो बच्चों पर भी उसका सकारात्मक असर पड़ता है। पढ़ाई, खेल, भोजन और आराम – इन सभी के लिए एक निश्चित समय निर्धारित करें। जब परिवार मिलकर एक रूटीन अपनाता है, तो बच्चों का मन स्वाभाविक रूप से केंद्रित रहता है।
2. डिजिटल चीजों पर नियंत्रण रखें
मोबाइल और टीवी जैसे डिवाइस बच्चों को तुरंत संतुष्टि देने वाले उपकरण बन चुके हैं, लेकिन इनसे उनकी ध्यान लगाने की क्षमता प्रभावित होती है। बच्चों को तकनीक से पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन उनके स्क्रीन टाइम को सीमित करना ज़रूरी है। खासतौर पर पढ़ाई या क्रिएटिव गतिविधियों के समय इन गैजेट्स को पूरी तरह से हटाना चाहिए।
3. लंबे समय तक लगातार पढ़ाई से बचाएं
बच्चे जब लगातार एक ही काम में लगे रहते हैं, तो उनका दिमाग थकने लगता है और ध्यान भटकने लगता है। बीच-बीच में छोटे ब्रेक देने से बच्चों का दिमाग तरोताजा रहता है और वे बेहतर तरीके से फोकस कर पाते हैं। पढ़ाई को बोझ नहीं, बल्कि उत्साहित करने वाली प्रक्रिया बनाना ज़रूरी है।
4. मल्टीटास्किंग से दूर रखें
बच्चों से एक साथ कई काम करवाने की प्रवृत्ति उन्हें भ्रमित कर सकती है। यदि बच्चा किसी एक गतिविधि में लगा है, तो उसे उसी में रहने दें। हर बार टोकने या काम बदलने से उनका मन विचलित हो सकता है। एक समय पर एक ही कार्य करने की आदत उन्हें ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है।
5. सक्रिय जीवनशैली अपनाएं
बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय रखना न सिर्फ उनकी सेहत के लिए, बल्कि मानसिक विकास के लिए भी ज़रूरी है। योग, मेडिटेशन और खेलों को बचपन से ही उनकी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। इससे उनका तनाव कम होता है और मानसिक संतुलन बेहतर बनता है। अगर माता-पिता इन गतिविधियों में साथ दें, तो बच्चे और अधिक प्रेरित होते हैं।
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