_1459075327.png)
Up Kiran, Digital Desk: भारत के कानूनी इतिहास में न्याय की व्याख्या सिर्फ दंड तक सीमित नहीं है—कभी-कभी यह सुधार का द्वार भी खोलता है। ऐसा ही एक मिसाल पेश की है बिहार के गोपालगंज के किशोर न्याय बोर्ड ने, जहां एक नाबालिग को शराब तस्करी के जुर्म में जेल भेजने के बजाय सुधारात्मक सजा दी गई है।
किशोर को नहीं भेजा गया जेल, मिली मंदिर में सेवा की सजा
यह मामला था उत्तर प्रदेश से बिहार में शराब की तस्करी से जुड़ा। पिछले वर्ष एक किशोर को एक अन्य व्यक्ति के साथ गैरकानूनी शराब ले जाते समय गिरफ्तार किया गया। वही उसका साथी बालिग था और उसे जेल भेज दिया गया, किशोर का मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के अधीन आया। जांच और सुनवाई के दौरान, किशोर ने अपना जुर्म कबूल कर लिया, साथ ही यह भी बताया कि वह तस्करों के बहकावे में आया और पैसों के लालच में यह कदम उठाया।
"सुधरने का अधिकार सबको है": मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी का मानवीय दृष्टिकोण
प्रधान न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) ने इस मामले को केवल अपराध की दृष्टि से नहीं देखा, बल्कि इसमें एक युवा जीवन को बचाने की संभावना भी देखी। उनका मानना था कि किशोर अपराधियों को समाज से काटने के बजाय, उन्हें समाज के साथ जोड़ना ज़रूरी है। अगर पहली गलती पर उन्हें सुधरने का अवसर मिले, तो वे दोबारा अपराध की ओर नहीं लौटेंगे।
इसी सोच के आधार पर बोर्ड ने नाबालिग को सात दिन तक थावे मंदिर में सफाई करने की सजा दी- एक ऐसी जगह जहां सेवा, अनुशासन और नैतिकता के मूल्यों को आत्मसात किया जा सके।
--Advertisement--