Up Kiran, Digital Desk: बिहार में बेटियों की स्थिति को लेकर एक बार फिर सवाल उठे हैं, जब एक 16 साल की नाबालिग लड़की को उसके ही माता-पिता ने अपने कर्ज चुकाने के लिए 33 वर्षीय ठेकेदार से जबरन ब्याह दिया। मगर ये कहानी यही खत्म नहीं होती ये लड़की चुप नहीं बैठी। प्रताड़ना और पढ़ाई छीनने के बाद उसने साहस दिखाया और देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।
अब सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले को देख रहा है और पहली ही सुनवाई में लड़की को सुरक्षा देने का आदेश भी दे चुका है।
कर्ज उतारने के नाम पर 'बाल विवाह'
ये मामला बिहार के एक गांव का है, जहाँ लड़की की शादी महज एक लेन-देन की वस्तु बन गई। उसके माता-पिता पर ठेकेदार से लिए गए कर्ज का दबाव था। इस कर्ज को उतारने का 'सस्ता सौदा' निकाला गया अपनी बेटी की शादी उसी ठेकेदार से करवा दी गई, वह भी तब जब लड़की महज 16 साल की थी और पढ़ाई कर रही थी।
ससुराल में ज़िंदगी बनी नरक
शादी के बाद लड़की को पढ़ाई बंद कर दी गई। याचिका में बताया गया है कि ससुराल में मानसिक और शारीरिक शोषण लगातार होता रहा। पति जबरन संबंध बनाने का दबाव बनाता और मायके जाने से रोका जाता।
मगर परीक्षा के दौरान उसे घर आने का मौका मिला। यही से कहानी बदली।
दोस्त बना सहारा, बना 'अपराधी'
पीड़िता ने अपने एक भरोसेमंद दोस्त सौरभ कुमार से मदद मांगी। दोनों साथ में वाराणसी चले गए, जहाँ से लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। ये कदम उसके लिए आज़ादी की दिशा में था, मगर परिवार ने इसे अपहरण का मामला बना दिया। 4 अप्रैल को उसकी मां ने पटना के पिपलावा थाने में सौरभ और उसके परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी।
मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस 'कानूनी हथियारबाजी' को पढ़ लिया और केस की संवेदनशीलता को समझते हुए सौरभ व पीड़िता दोनों को सुरक्षा देने का आदेश जारी किया।
अदालत ने कहा: बाल विवाह नहीं, अपराध है ये
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 32 और 142 का हवाला देकर शादी को अमान्य घोषित करने की मांग की गई है। कोर्ट से अपील की गई कि नाबालिग की मर्जी के खिलाफ हुई शादी को रद्द किया जाए और उसे वापस स्वतंत्र जीवन जीने का मौका मिले।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के डीजीपी और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया कि लड़की और उसके मित्र की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
क्या कहता है कानून
भारत में बाल विवाह अधिनियम, 2006 के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी अवैध मानी जाती है। मगर अब भी देश के ग्रामीण इलाकों में ऐसे मामले आम हैं, जहाँ बेटियों को बोझ समझा जाता है और सामाजिक या आर्थिक मजबूरी में उनका भविष्य कुर्बान कर दिया जाता है।
एक लड़की की आवाज़ – कईयों के लिए उम्मीद
ये मामला सिर्फ एक पीड़िता की लड़ाई नहीं, बल्कि उन हजारों बेटियों के लिए मिसाल है, जिनकी ज़िंदगियाँ परंपराओं और कर्ज के नीचे दबा दी जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट का ये हस्तक्षेप कानूनी व्यवस्था में विश्वास को मजबूत करता है।
बता दें कि ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अगली सुनवाई में ये स्पष्ट हो सकता है कि अदालत इस बाल विवाह को किस तरह से अमान्य घोषित करती है, और लड़की को पुनः शिक्षा और सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिल पाता है या नहीं।
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