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Up kiran,Digital Desk : दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की फ़ीस कब कितनी बढ़ जाए, यह हमेशा से पेरेंट्स के लिए एक बड़ा सिरदर्द रहा है। लेकिन अब शायद इस 'मनमानी' पर लगाम लगने वाली है। दिल्ली सरकार ने एक नया और सख़्त क़ानून लागू कर दिया जिसका सीधा मकसद स्कूलों को जवाबदेह बनाना है। उपराज्यपाल (LG) वीके सक्सेना ने भी इस पर मुहर लगा दी है, यानी अब यह क़ानून दिल्ली के 1700 से ज़्यादा प्राइवेट स्कूलों पर लागू हो गया है।

क्या है इस नए कानून में पेरेंट्स के लिए सबसे ख़ास?

इस कानून की सबसे बड़ी और ताकतवर बात यह है कि अब अगर कोई स्कूल मनमाने तरीक़े से फ़ीस बढ़ाता है, तो पेरेंट्स चुप नहीं बैठेंगे। अगर 15% पेरेंट्स एक साथ मिलकर शिकायत कर दें, तो स्कूल की जांच होगी। यानी अब आपकी आवाज़ में पहले से ज़्यादा वज़न होगा।

इस पूरे मामले पर नज़र रखने के लिए तीन लेवल पर कमेटियाँ बनाई गई हैं—स्कूल लेवल पर, ज़िला लेवल पर और फिर एक सबसे ऊपर।

"शिक्षा धंधा नहीं, अधिकार है"

दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने इस पर साफ़ कहा कि हमारी सरकार के लिए पेरेंट्स का हित सबसे ऊपर है। उन्होंने एक बड़ी और साफ़ बात कही - "शिक्षा कोई धंधा नहीं, बल्कि हर बच्चे का अधिकार है।"

उन्होंने यह भी कहा कि पिछली सरकारें 27 साल तक इस मुद्दे को टालती रहीं, लेकिन हमने कुछ ही दिनों में यह बड़ा सुधार लागू कर दिया। सरकार का मक़सद साफ़ है:

  • पारदर्शिता: स्कूलों को अब अपनी फ़ीस, ख़र्चों और कमाई का पूरा हिसाब देना होगा। वे यह नहीं छिपा सकते कि फ़ीस क्यों बढ़ा रहे हैं।
  • जवाबदेही: अगर स्कूल ग़लत तरीक़े से फ़ीस बढ़ाते हैं, तो उन पर कार्रवाई होगी।
  • पेरेंट्स की शक्ति: यह कानून पेरेंट्स को एक मज़बूत आवाज़ देता है, ताकि वे स्कूलों की मनमानी के ख़िलाफ़ एकजुट हो सकें।

साफ़ है कि दिल्ली सरकार ने यह क़ानून बनाकर गेंद अब काफ़ी हद तक पेरेंट्स के पाले में डाल दी है, ताकि शिक्षा के नाम पर कोई भी स्कूल अपनी जेबें न भर सके।