
Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना ने एक युग पुरुष को खो दिया है। डोड्डा पद्मा (Dodda Padma), जिन्होंने दशकों पहले तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष (Telangana Peasants Armed Struggle) में एक अग्रणी भूमिका निभाई थी, का 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका जीवन न केवल संघर्ष, साहस और बलिदान की एक मिसाल था, बल्कि यह भूमिहीन किसानों (Landless Farmers Telangana) के अधिकारों और सामाजिक न्याय (Social Justice Telangana) के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक भी था। उनकी मृत्यु ने तेलंगाना के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय को बंद कर दिया है, लेकिन उनकी विरासत हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।
तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष, जिसे तेलंगाना विद्रोह (Telangana Rebellion) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण किसान आंदोलनों (Peasant Movements India) में से एक है। यह 1946 से 1951 तक चला, जब तेलंगाना तत्कालीन हैदराबाद रियासत का हिस्सा था। इस आंदोलन का मुख्य कारण सामंती उत्पीड़न (Feudal Oppression), ज़मींदारों द्वारा किसानों का शोषण, बेगारी प्रथा (Forced Labor System) और भूमि का असमान वितरण था।
किसान भूखे मर रहे थे जबकि ज़मींदार और देशमुख (जागीरदार) अपार धन और भूमि के मालिक थे। इस अन्याय के खिलाफ किसानों ने हथियार उठा लिए और अपनी ज़मीन के लिए एक भीषण लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई निजाम शासन और सामंती ताकतों के खिलाफ थी, जिसने अंततः भारत सरकार को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया और हैदराबाद रियासत का भारत में विलय (Integration of Hyderabad with India) हुआ।
डोड्डा पद्मा: संघर्ष की एक वीरांगना
इसी संघर्ष में डोड्डा पद्मा जैसी सैकड़ों महिलाएँ और पुरुष शामिल हुए, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर किसानों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई। डोड्डा पद्मा ने न केवल इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, बल्कि वे इसकी एक प्रमुख महिला क्रांतिकारी (Woman Revolutionary Telangana) नेता बनकर उभरीं। उनकी निडरता, रणनीति और किसानों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति ने उन्हें "झुग्गी वाली शेरनी" का उपनाम दिलाया। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध में भाग लिया, किसानों को एकजुट किया और उन्हें उनके अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। उनकी भूमिका इस बात का प्रमाण है कि तेलंगाना मुक्ति संग्राम में महिलाओं का योगदान कितना महत्वपूर्ण था। उन्होंने दिखा दिया कि कैसे एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण परिस्थितियों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
विरासत और प्रभाव: डोड्डा पद्मा का संघर्ष सिर्फ भूमि के टुकड़ों के लिए नहीं था, बल्कि यह सम्मान, गरिमा और न्याय के लिए था। उनका जीवन हमें याद दिलाता है कि कैसे जमीनी स्तर के आंदोलन सामाजिक असमानता को चुनौती दे सकते हैं। उनके और उनके साथियों के बलिदान ने तेलंगाना में भूमि सुधार (Land Reforms Telangana) और कृषि विकास (Agricultural Development Telangana) की नींव रखी। आज, जब हम तेलंगाना को एक प्रगतिशील राज्य के रूप में देखते हैं, तो हमें उन गुमनाम नायकों को नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने अपनी जवानी और जीवन इस क्षेत्र के बेहतर भविष्य के लिए समर्पित कर दिया।
उनकी मृत्यु ने एक ऐसे युग का अंत कर दिया है जब लोग अपने सिद्धांतों के लिए मरने को तैयार थे। डोड्डा पद्मा जैसी शख्सियतें तेलंगाना के इतिहास (Telangana History) और भारत के स्वतंत्रता संग्राम (India's Freedom Struggle) का एक अविभाज्य हिस्सा हैं। वे आज भी तेलंगाना की युवा पीढ़ी और किसान आंदोलन (Kisan Andolan) से जुड़े लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके विचार, संघर्ष और बलिदान हमें यह सिखाते हैं कि न्याय के लिए लड़ाई कभी खत्म नहीं होती और हर नागरिक को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
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