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Up kiran,Digital Desk : जब किंग कोहली का बल्ला चलता है, तो सारे रिकॉर्ड टूट जाते हैं और आलोचकों के मुंह पर अपने आप ताले लग जाते हैं। साउथ अफ्रीका के खिलाफ रांची में भी कुछ ऐसा ही हुआ। विराट ने न सिर्फ एक शानदार शतक जड़ा, बल्कि वनडे क्रिकेट में 52 शतक लगाकर दुनिया के पहले ऐसे खिलाड़ी बन गए, जिसने एक ही फॉर्मेट में इतने शतक लगाए हों। लेकिन असली धमाका तो मैच के बाद हुआ, जब कोहली ने अपने आलोचकों को बल्ले के बाद अब अपनी बातों से भी धो डाला।

कहानी के पीछे की कहानी क्या है?

इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। पिछले कुछ समय से भारतीय क्रिकेट में एक बड़ी बहस चल रही थी— “डोमेस्टिक क्रिकेट खेलो, वरना टीम से बाहर जाओ।” BCCI और टीम मैनेजमेंट का मानना था कि खिलाड़ियों को टीम में जगह बनाने के लिए रणजी जैसे घरेलू टूर्नामेंट खेलने चाहिए। इसी नियम के चक्कर में ईशान किशन और श्रेयस अय्यर जैसे बड़े खिलाड़ियों को अपना सालाना कॉन्ट्रैक्ट तक गंवाना पड़ा था। खुद विराट कोहली और रोहित शर्मा को भी घरेलू क्रिकेट खेलना पड़ा था।

और फिर मैदान पर उतरे किंग कोहली...

कोहली लगभग एक महीने बाद कोई वनडे मैच खेल रहे थे, लेकिन उनकी फॉर्म को देखकर ऐसा लगा ही नहीं कि वो क्रिकेट से दूर थे। उन्होंने आते ही एक बेहतरीन शतक जड़ दिया।

...और फिर आया वो बयान जिसने आग लगा दी

मैच के बाद, जब विराट कोहली को 'प्लेयर ऑफ द मैच' का अवॉर्ड मिला, तो उनसे उनकी तैयारियों के बारे में पूछा गया। इस पर कोहली ने जो जवाब दिया, वो सीधा और सरल था, लेकिन इसके निशाने पर शायद BCCI और गौतम गंभीर जैसे कोच थे, जो बहुत ज़्यादा प्रैक्टिस और तैयारी पर जोर देते हैं।

कोहली ने कहा,
“अगर आपको समझ में आए, तो मैं कभी भी बहुत ज्यादा तैयारी में यकीन नहीं करता। मेरा सारा क्रिकेट मेंटल रहा है। जब तक मैं दिमागी तौर पर अच्छा महसूस करता हूं, मैं गेम खेल सकता हूं।”

कोहली का यह जवाब उन लोगों के लिए एक करारा तमाचा था, जो यह मानते हैं कि फॉर्म में रहने के लिए लगातार खेलते रहना और घंटों प्रैक्टिस करना ज़रूरी है। उन्होंने साफ कर दिया कि उनके लिए क्रिकेट सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि एक दिमागी खेल है, और जब उनका दिमाग सही जगह पर होता है, तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता।

एक बार फिर किंग कोहली ने साबित कर दिया कि फॉर्म और क्लास के आगे, बाकी सब बातें छोटी पड़ जाती हैं।