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Up Kiran, Digital Desk: मालेगांव ब्लास्ट के बाद से आतंकवाद के तमगें के साथ जीने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य सात आरोपियों को एनआईए की अदालत ने हाल ही में सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। इस फैसले ने लंबे समय तक जेल में बिताए प्रज्ञा के संघर्षों को एक नई दिशा दी है जिन्होंने न केवल आतंकवाद के आरोपों का सामना किया बल्कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से भी जूझीं।

हिंदुत्ववादी विचारों की मजबूत पैरोकार हैं प्रज्ञा

55 वर्षीय साध्वी प्रज्ञा का जन्म 2 फरवरी 1970 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले में हुआ था। बचपन में ही वे तेज-तर्रार और साहसी स्वभाव की लड़की थीं जो जींस-टीशर्ट पहनकर अपने भाई-बहनों के साथ सड़कों पर मनचलों को सबक सिखाने निकलती थीं। हिंदुत्ववादी विचारों की मजबूत पैरोकार प्रज्ञा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी तक अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की।

उनके पिता चंद्रपपाल सिंह भिंड में एक प्रतिष्ठित आयुर्वेदाचार्य और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। प्रज्ञा ने एमजेएस कॉलेज से एमए की डिग्री प्राप्त की और बाद में भोपाल के विद्यानिकेतन कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन से बीपीएड किया। 2002 में उन्होंने ‘जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य सामाजिक कार्यों के साथ-साथ उन लड़कियों की मदद करना था जिन्हें दूसरे समुदाय के लड़के साथ लेकर भाग जाते थे।

साध्वी बनने का उनका मार्ग स्वामी अवधेशानंद गिरी से प्रेरित था। इंदौर में राष्ट्रीय जागरण मंच की स्थापना कर वे पूरे देश में हिंदुत्ववादी कार्यक्रमों में सक्रिय रहीं।

एक घटना ने बदल दी पूरी जिंदगी

लेकिन 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए विस्फोट ने उनकी जिंदगी का रुख पूरी तरह बदल दिया। मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर मालेगांव की एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में बम विस्फोट हुआ जिसमें छह लोगों की मौत और सौ से अधिक लोग घायल हुए। प्रज्ञा सहित सात लोगों को महाराष्ट्र एटीएस ने आरोपित कर अरेस्ट किया। आरोप था कि विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल उनके नाम पर पंजीकृत थी।

हालांकि 17 साल लंबी जांच और सुनवाई के बाद एनआईए की अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया। अदालत ने यह भी माना कि विस्फोट मोटरसाइकिल पर लगे बम से हुआ इसका भी ठोस प्रमाण नहीं मिला।

2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने 2019 में भाजपा ज्वाइन की और भोपाल से लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचीं। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह को हराकर राजनीतिक क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत की। हालांकि 2024 के चुनाव में उन्हें पार्टी का टिकट नहीं मिला।

साध्वी प्रज्ञा के राजनीतिक जीवन को उनके विवादित बयानों ने भी अक्सर सुर्खियों में रखा। खासतौर पर उन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहकर विवाद खड़ा किया था जिस पर भाजपा नेतृत्व ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जताई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि उन्होंने माफी मांगी है लेकिन वह इसे दिल से स्वीकार नहीं कर पाएंगे।

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