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Uttarakhand trees cutting: उत्तराखंड में जंगल की आग के खतरे को कम करने के लिए तैयारियां चल रही हैं। सन् 96 के बाद पहली बार जंगलों के बीच स्थापित फायर लाइन में लगे पांच लाख पेड़ों को हटाया जाएगा। वन प्रशासन ने ये तैयारियां शुरू कर दी हैं। जिनकी ये बात नहीं पता वो सरकार की आलोचना कर रहे हैं।

वन विभाग 15 फरवरी से 15 जून तक आग का मौसम मानता है। इस दौरान कई जंगल में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। इस मौसम की शुरुआत से पहले जंगल को आग से बचाने के लिए कई जरूरी उपाय लागू करने की जरूरत है, जिसमें मुख्य रूप से फायर लाइन के रखरखाव पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

गोधा बर्मन मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जंगलों के भीतर 1,000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले पेड़ों को काटने पर रोक लगाई गई थी, जिसके चलते 1996 से फायर लाइन में पेड़ लगे हुए हैं। वर्तमान में ये पेड़ बड़े हो गए हैं, जिसके चलते फायर लाइन पूरी तरह से जंगल में तब्दील हो गई है, जिससे जंगल की आग को फैलने से रोकने के प्रयास कठिन हो गए हैं।

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान स्थापित नियमों के मुताबिक, दो वन प्रभागों के बीच 100 फीट की फायर लाइन अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, वन प्रभागों के भीतर विभिन्न रेंजों के बीच 50 फीट की फायर लाइन की आवश्यकता होती है, और जंगल की आग को फैलने से रोकने में मदद के लिए विभिन्न बीटों के बीच 30 फीट की फायर लाइन बनाए रखी जानी चाहिए।

विशेषज्ञों ने कहा कि फायर लाइन प्रणाली अंग्रेजो के समय से ही प्रभावी है, जो जंगल की आग को प्रबंधित करने के लिए वैज्ञानिक रूप से सिद्ध विधि के रूप में काम करती है। किसी भी संभावित जंगल की आग को काबू करने के लिए पूरी तरह से फायर लाइन साफ चट बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

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