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आज की तेज़ और तनावपूर्ण जिंदगी ने हमारे दिल को भी कमजोर बना दिया है। हार्ट फेल्योर यानी हृदय की कार्यक्षमता में कमी अब केवल बुजुर्गों की समस्या नहीं रही। युवा वर्ग भी इस गंभीर बीमारी की चपेट में आने लगे हैं। अगर दिल सही तरीके से शरीर को ब्लड और ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाता, तो इसे हार्ट फेल्योर कहते हैं। यह स्थिति खतरनाक हो सकती है, लेकिन सही समय पर सावधानी और इलाज से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

हार्ट फेल्योर क्यों होता है? जानिए इसके पीछे की वजहें

दिल की मांसपेशियां अगर कमजोर हो जाएं या कठोर हो जाएं, तो दिल अपना काम ठीक से नहीं कर पाता। कमजोर दिल पर्याप्त रक्त नहीं पंप कर पाता, जबकि कठोर मांसपेशियां दिल को फैलने और सिकुड़ने से रोकती हैं। ऐसे में शरीर के कई हिस्सों में तरल पदार्थ जमा होने लगता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ, पैरों और पेट में सूजन जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इसे कभी-कभी कन्जेस्टिव हार्ट फेल्योर भी कहा जाता है।

हार्ट फेल्योर के लिए कौन हैं सबसे ज़्यादा खतरे में?

इस बीमारी का खतरा हर उम्र के लोगों को हो सकता है, लेकिन यह बुजुर्गों में अधिक देखने को मिलता है। इसके पीछे मुख्य कारण हैं कोरोनरी आर्टरी की बीमारियां, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा और धूम्रपान। शुरूआती दौर में इस बीमारी के लक्षण कम ही नजर आते हैं, लेकिन धीरे-धीरे सांस फूलना, थकावट और सूजन जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं।

हार्ट फेल्योर से डरना नहीं, समझदारी से करें मुकाबला

हार्ट फेल्योर का मतलब यह नहीं कि आपकी जिंदगी खत्म हो गई। यह एक संकेत है कि आपको अपनी दिल की सेहत पर ज्यादा ध्यान देना होगा। सही समय पर डॉक्टर से जांच और उपचार कराकर तथा अपनी जीवनशैली में बदलाव कर आप सालों तक स्वस्थ और सक्रिय रह सकते हैं।