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भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव के बीच एक सकारात्मक संकेत सामने आया है।  पाकिस्तान ने बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को 21 दिन की हिरासत के बाद रिहा कर दिया।  यह घटना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, क्योंकि इससे भारत के 54 लापता सैनिकों की रिहाई की उम्मीदें भी जागी हैं।

पूर्णम कुमार शॉ की रिहाई: एक नई शुरुआत

पूर्णम कुमार शॉ, जो 182वीं बटालियन में तैनात थे, 23 अप्रैल को पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में गलती से पाकिस्तान सीमा में प्रवेश कर गए थे।  पाकिस्तान रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में लिया और 14 मई को भारत को सौंपा।  इस रिहाई के साथ, दोनों देशों के बीच सीमा पर सहयोग और मानवीय पहलुओं की दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाया गया है।

लापता सैनिकों की वापसी की उम्मीदें

भारत के 54 लापता सैनिक, जो 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं, उनकी रिहाई के लिए कई वर्षों से प्रयास जारी हैं।  पूर्णम कुमार शॉ की रिहाई ने इस दिशा में एक नई उम्मीद जगाई है।  विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।

नए भारत की कूटनीतिक पहल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व में भारत ने हमेशा अपने नागरिकों और सैनिकों की सुरक्षा और सम्मान को प्राथमिकता दी है।  पूर्णम कुमार शॉ की रिहाई इस नीति का एक उदाहरण है, जो यह दर्शाता है कि भारत अब अपनी कूटनीतिक पहल और दबाव के माध्यम से अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम है।

निष्कर्ष

पूर्णम कुमार शॉ की रिहाई न केवल एक सैनिक की घर वापसी का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक सफलता और पाकिस्तान के साथ रिश्तों में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक संकेत भी है।  इससे भारत के लापता सैनिकों की रिहाई की उम्मीदें भी जागी हैं, जो भविष्य में दोनों देशों के बीच बेहतर सहयोग और समझ का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।

यह घटना यह भी दर्शाती है कि जब दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग की भावना होती है, तो सीमा पर मानवीय मुद्दों का समाधान संभव है।  आशा है कि यह सकारात्मक पहल दोनों देशों के रिश्तों में सुधार और शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। 
 

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