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Up Kiran, Digital Desk: कई बार जिंदगी और मौत की जंग लड़ते मरीज को राहत देने के लिए डॉक्टरों को ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं, जो आमतौर पर हर मरीज पर नहीं आजमाए जाते। मॉर्फिन भी एक ऐसी ही दर्दनाशक दवा है, जिसका नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में नशे का ख्याल आ जाता है। लेकिन गंभीर से गंभीर दर्द को पलभर में हर लेने वाली यह दवा आखिर कैसे काम करती है, इसका इतिहास क्या है और क्यों डॉक्टर इसे आखिरी उपाय के तौर पर इस्तेमाल करते हैं आइए एक नई नजर से समझते हैं।

मॉर्फिन: दर्द से राहत पाने की एक असरदार दवा

कल्पना कीजिए किसी मरीज को ऐसा असहनीय दर्द हो जो साधारण पेनकिलर भी कम न कर पाए। ऐसी हालत में डॉक्टर मरीज की पीड़ा को काबू में लाने के लिए मॉर्फिन के इंजेक्शन का सहारा लेते हैं। यह दवा मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचकर दर्द के संदेशों को रोक देती है, जिससे शरीर को दर्द का अहसास होना बंद हो जाता है और मरीज को राहत महसूस होती है।

मॉर्फिन की खोज और इतिहास

मॉर्फिन का संबंध ओपिओइड श्रेणी की दवाओं से है। यह अफीम के पौधे पापावर सोम्निफेरम से निकाली जाती है। दिलचस्प बात यह है कि मॉर्फिन का उपयोग कोई नया नहीं है। कहा जाता है कि अफीम से दर्द कम करने की परंपरा हजारों साल पुरानी है। पर इसे रसायनिक रूप से सबसे पहले 1806 में जर्मन रसायनज्ञ फ्रेडरिक सेरटर्नर ने अलग किया था। तभी से मेडिकल साइंस में इसे गंभीर दर्द के इलाज के लिए अनमोल माना जाने लगा।

बहुत से लोग नहीं जानते कि मॉर्फिन सिर्फ दर्द ही नहीं घटाता बल्कि गहरी नींद भी ला सकता है। आमतौर पर इसे इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है ताकि असर तुरंत दिखे, हालांकि कुछ मामलों में टैबलेट या लिक्विड के रूप में भी दिया जा सकता है। सर्जरी के दौरान या ऑपरेशन के पहले भी मरीज को बेहोश करने के लिए मॉर्फिन का इस्तेमाल एनेस्थीसिया के साथ किया जाता है।

अब सवाल उठता है कि यह दवा आखिर शरीर में करती क्या है? जब मॉर्फिन शरीर में पहुंचती है तो यह सीधा हमारे नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र में ओपिओइड रिसेप्टर्स को सक्रिय कर देती है। ये रिसेप्टर्स मस्तिष्क और शरीर के बीच दर्द के संकेतों को भेजने के काम में बाधा डालते हैं। नतीजा यह होता है कि मरीज को महसूस ही नहीं होता कि दर्द कब खत्म हो गया।

हालांकि, मॉर्फिन के इस्तेमाल से डॉक्टर हमेशा बचने की कोशिश करते हैं। इसकी वजह यह है कि यह दवा बहुत ताकतवर नशे की आदत डाल सकती है। अगर मरीज को बार-बार मॉर्फिन दी जाए तो शरीर इसकी आदी हो सकती है और फिर बिना इसके दर्द कम नहीं होता। इसलिए मेडिकल एक्सपर्ट्स सिर्फ उन्हीं स्थितियों में मॉर्फिन देते हैं, जब बाकी सारे विकल्प फेल हो जाएं या दर्द बर्दाश्त के बाहर हो।

कुल मिलाकर, मॉर्फिन उस वक्त मरीज के लिए वरदान साबित होती है जब दर्द असहनीय हो जाए और बाकी दवाएं काम न करें। लेकिन इस राहत के साथ ही जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है कि इसका दुरुपयोग न हो और मरीज को इसकी लत न लगे। यही वजह है कि मॉर्फिन को ‘पेन किलर का राजा’ तो कहा जाता है, पर इसे बहुत सोच-समझकर ही इस्तेमाल किया जाता है।

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