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Up Kiran, Digital Desk: हार्ट अटैक या स्ट्रोक के बाद डॉक्टर अक्सर मरीजों को खून पतला करने वाली एक छोटी सी गोली देते हैं, जिसका नाम है एस्पिरिन (Aspirin)। यह सालों से दिल के मरीजों के लिए 'जीवन रक्षक' दवा मानी जाती रही है। इसका काम होता है खून के अंदर प्लेटलेट्स को आपस में चिपकने से रोकना, ताकि खून के थक्के (Blood Clots) न बनें और धमनियों में खून का बहाव बना रहे।

लेकिन क्या हो, अगर यह 'सुरक्षा कवच' ही काम करना बंद कर दे? जी हां, कुछ लोगों में ऐसा होता है, जिसे 'एस्पिरिन रेजिस्टेंस' कहते हैं। इसका मतलब है कि मरीज एस्पिरिन की गोली तो रोज ले रहा है, लेकिन उसका शरीर दवा पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, और खून के थक्के बनने का खतरा जस का तस बना हुआ है।

ऐसे में सवाल उठता है कि अब अगला कदम क्या? यहीं पर एक और दवा का नाम सामने आता है - क्लोपिडोग्रेल (Clopidogrel)।

क्या Clopidogrel है Aspirin का विकल्प?

क्लोपिडोग्रेल भी खून को पतला करने वाली एक शक्तिशाली दवा है। यह भी प्लेटलेट्स को चिपकने से रोकती है, लेकिन इसका काम करने का तरीका एस्पिरिन से थोड़ा अलग होता है।

तो फिर 'डुअल थेरेपी' क्या बला है?

आपने अक्सर सुना होगा कि डॉक्टर ने दिल के मरीज को दो तरह की खून पतला करने वाली गोलियां दी हैं। इसे ही 'डुअल एंटीप्लेटलेट थेरेपी' (DAPT) कहते हैं, जिसमें एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल दोनों को एक साथ दिया जाता है।

यह कोई कन्फ्यूजन नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है!

क्यों है यह जरूरी?: स्टेंट एक बाहरी वस्तु है। शरीर इसे स्वीकार नहीं करता और इस पर तेजी से खून के थक्के बनाने की कोशिश करता है, जिससे स्टेंट बंद हो सकता है और दोबारा हार्ट अटैक आ सकता है। ऐसे हाई-रिस्क वाले मरीजों को बचाने के लिए, डॉक्टर दोनों दवाओं की ताकत का इस्तेमाल करते हैं। एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल मिलकर दो अलग-अलग रास्तों से प्लेटलेट्स पर हमला करते हैं, जिससे थक्का बनने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती।

अंतिम फैसला डॉक्टर का

तो सवाल का जवाब क्या है? क्लोपिडोग्रेल सिर्फ एस्पिरिन का विकल्प ही नहीं है, बल्कि कुछ मामलों में यह उसका सबसे शक्तिशाली 'पार्टनर' भी है।

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